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श्री कमलबत्तीसी जी
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ब्रह्म स्वरूपी चेतन लक्षण, एक अखंड अविनाशी हो । अलख निरंजन परम ब्रह्म हो, ध्रुव धाम के वासी हो ॥ २. सिद्ध सिद्धालय वासी हो तुम, अनन्त चतुष्टय धारी हो । परम शान्ति आनन्दमयी हो, शिव सत्ता अधिकारी हो ॥
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भजन
हे आतम परमातम हो, शुद्धातम सिद्ध समान हो । निज की सत्ता शक्ति देखो, खुद आतम भगवान हो ।
३. भूल स्वयं को कहाँ भटक रहे कैसी मति यह मारी हो । क्रमबद्ध पर्याय असत् है, भ्रम भ्रांति यह सारी हो ।
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४. द्रव्यदृष्टि का उदय हो गया, द्रव्य स्वभाव निहारी हो । ध्रुव सत्ता में डटे रहो बस, ज्ञानानन्द बलिहारी हो ।
ज्ञान भिन्न है राग भिन्न है, जिनवाणी उच्चारी हो । कर्मोदय सब क्षय होना है, अब तो अंतिम बारी हो ॥
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६. दृढ़ता से अब काम निकालो, छोड़ो दुनियादारी हो । निस्पृह निर्द्वद मस्त रहो तो, जय जयकार तुम्हारी हो ॥
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भजन -
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निज स्वरूप की अनुभूति ही, समयसार का सार है । शुद्धातम का दर्शन कर लो, वरना सब बेकार है ।
एक अखंड अभेद आत्मा, शुद्ध बुद्ध परमातम है । सिद्ध स्वरूपी ममल स्वभावी, ध्रुव तत्व शुद्धातम है ॥ पर पर्याय से भिन्न सदा ही, निराकार निर्विकार है.... धन शरीर परिवार सब जड़ है, पुद्गल धूल का ढेर है। द्रव्य दृष्टि से देखो जग को, माया का सब खेल है ॥ भेद ज्ञान तत्व निर्णय कर लो, बतलाते गुरू तार हैं... जन्म-मरण से छूटना चाहो, निज सत्ता स्वीकार करो । मुक्ति मार्ग पर चलना चाहो, साधू पद महाव्रत धरो ॥ नरभव सब शुभयोग मिले हैं, जिनवाणी का शरणा है। जीवन का ही दांव लगा दो, एक बार तो मरना है ॥ ध्यान समाधि लगाओ अपनी, मचेगी जय-जयकार है...
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श्री कमलबत्तीसी जी
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भजन ७
निज आत्मा निहार लो, बस हो गया धरम । संयम तप को धार लो, बस हो गया धरम ॥
भजन - ८
१.
भजले भजले रे तू आतम राम, खबर नहिं है एक पल की ।। काम धाम धन्धे में निशदिन, पाप ही पाप कमावे । जिनके पीछे मरा जा रहा, कोई काम नहिं आवे...भजले.....
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व्यसन विषय को त्याग दो, मद मोह को तजो । मिथ्यात्व अपना मेट लो, बस हो गया धरम... निज... अज्ञान से बंधन है, सद्ज्ञान से मुक्ति । अब भेदज्ञान जान लो, बस हो गया धरम... निज... पूजादि पाठ क्रिया करम, ये धर्म नहीं है । वस्तु स्वभाव जान लो, बस हो गया धरम... निज... आतम ही है परमात्मा शुद्धात्मा ज्ञानी । जिनवर की बात मान लो, बस हो गया धरम... निज... एक-एक समय का परिणमन, क्रमबद्ध असत है । ध्रुव तत्व अपना जान लो, बस हो गया धरम... निज... निज स्वरूप जाने बिना मुक्ति नहीं हो । अपनी सुरत संभार लो, बस हो गया धरम... निज... सिद्धोऽहं शुद्धोsहं, अहं ब्रह्मास्मि कहो । अनलहक पुकार लो, बस हो गया धरम... निज... धर्म से मुक्ति मिले, सुख शान्ति और आनंद | ज्ञानानंद विचार लो, बस हो गया धरम... निज...
धन शरीर परिवार ये तेरे, कोई साथ नहिं जावे । अपनी करनी आप ही भुगते, कोई न हाथ लगावे...भजले.... ज्ञानानन्द करो मत देरी, आतम ध्यान लगाओ । छोड़ छाड़ के सब झंझट को मोक्ष परम पद पाओ...भजले....
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