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श्री कमलबत्तीसी जी
१२. बारह भावना
आतम ही तो परमातम है, सब धर्मों का सार है । निज स्वरूप का बोध जगा लो, ब्रम्ह सदा अविकार है ॥ निज अज्ञान मोह के कारण, सह रहे कर्म की मार है। बारह भावना भाने से होता आतम उद्धार है । वैराग्य की जननी बारह भावना, वस्तु स्वरूप बताती है। स्व पर का यथार्थ निर्णय यह अपने आप कराती है ॥ इनका चिन्तन मनन ध्यावना, नरभव का ही सार है। बारह भावना भाने से होता आतम उद्धार है ॥
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१. अनित्य भावना जो जन्मा है अवश्य मरेगा, ये ही जगत विधान है। मर करके जो जन्म न लेता, वह बनता भगवान है । आतम अजर अमर अविनाशी, अज्ञान से बना गंवार है। अनित्य भावना भाने से होता आतम उद्धार है । संयोगी पर्याय बिछुड़ना, यह मरना कहलाता है । वस्तु स्वरूप विचार करो तो, सब अज्ञान नसाता है ॥ पर्यायी परिणमन क्षणिक है, अपनी रखो सम्हार है। अनित्य भावना भाने से होता आतम उद्धार है ।
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२. अशरण भावना
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शरण नहीं है जग में कोई झूठे सब रिश्ते नाते । स्वास्थ लाग करें सब प्रीति, जरा काम में नहीं आते ॥ जन्मो मरो, स्वयं ही भुगतो, यही तो सब संसार है। अशरण भावना भाने से होता आतम उद्धार है ।
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देख लिया जग का स्वरूप सब अब किसको क्या कहना है। ज्ञानी हो, तो अभी चेत लो, ज्ञानानंद में रहना है ॥ धर्म कर्म में कोई न साथी, झूठा सब व्यवहार है। अशरण भावना भाने से होता आतम उद्धार है ॥
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श्री कमलबत्तीसी जी
३. संसार भावना
कोई नहीं किसी का साथी, न कोई सुख दुःख दाता । अपना अपना भाग्य साथ ले, जग में जीव आता जाता ॥ फिर किसको अपना कहते हो, सब जग ही निस्सार है। संसार भावना भाने से होता आतम उद्धार है ।
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धन वैभव सब कर्म उदय से मिलता और बिछुड़ता है । कर्ता बनकर मरने से ही, जीव अनादि पिटता है ॥ देख लिया सब जान लिया फिर, अब क्यों बना लवार है। संसार भावना भाने से होता आतम उद्धार है ।
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४. एकत्व भावना
आप अकेला आया जग में, आप अकेला जायेगा । जैसी करनी यहाँ कर रहा, उसका ही फल पायेगा | चेत जाओ अब भी जल्दी से रहना दिन दो चार है।
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एकत्व भावना भाने से
होता आतम उद्धार है ॥
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माया का यह खेल जगत है, जीव तो ज्ञान स्वभावी है। चिदानन्द चैतन्य आत्मा, ममलह ममल स्वभावी है । निज सत्ता शक्ति पहिचानो, मौका मिला अपार है । एकत्व भावना भाने से होता आतम उद्धार है ॥
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५. अन्यत्व भावना
इस शरीर से सब संबंध है, जीव से न कोई नाता । सारा खेल खत्म हो जाता, जब यह जीव निकल जाता ॥ धन वैभव सब पड़ा ही रहता, साथी न परिवार है। अन्यत्व भावना भाने से होता आतम उद्धार है ॥
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देखलो सब प्रत्यक्ष सामने, कैसी है दुनियांदारी । नाते रिश्ते छूट गये सब, छूट गई सब हुश्यारी ॥ पूछने वाला कोई नहीं है, करते रहो विचार है । अन्यत्व भावना भाने से होता आतम उद्धार है ॥
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६. अशुचि भावना
हाड़ मांस मल मूत्र भरा यह, बना हुआ तन पिंजरा है। इसमें कैदी जीव अज्ञानी, रहता मूर्ख अधमरा है ।