________________
प्राक्कथन सोलहवीं शताब्दी के महान संत श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज आत्मज्ञानी संत थे। उन्होंने अपने चौदह ग्रन्थों में यही उपदेश दिया है कि जिन दर्शन भाव प्रधान है क्रिया प्रधान नहीं। अरिहंत और सिद्ध परमात्मा के गुणों की यह आराधना एवं उनके स्वरूप के समान अपने स्वरूप को जानकर उसमें जमना, रमना भाव पूजा है जिससे मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
अनादिकाल से हम सच्चे देव, गुरु, शास्त्र एवं धर्म के स्वरूप को नहीं जानकर मिथ्या देव, गुरु, शास्त्र एवं धर्म की उपासना करते हुए गृहीत मिथ्यात्व का सेवन कर रहे हैं और चार गति चौरासी लाख योनियों में भ्रमण कर रहे हैं। सच्चे देव, गुरु,शास्त्र और धर्म की सच्ची समझ होने पर हमें सच्चा श्रद्धान होगा एवं हम सम्यग्ज्ञान प्राप्त कर सम्यक्चारित्र का पालन करेंगे।
श्री तारण तरण मुक्त महाविद्यालय के अंतर्गत ज्ञानोदय की प्रथम वर्ष की पुस्तक से हम सभी के बहुत से संशय, भ्रम दूर हुए हैं। रूढ़िवादिता, अंधविश्वास कम हुआ है। इसमें स्वयं को जानने की अभिलाषा उत्पन्न हुई है। इसी कड़ी में अध्यात्म रत्न श्रद्धेय बा. ब्र. बसन्त जी महाराज के अथक प्रयासों से द्वितीय वर्ष की पुस्तक तैयार हुई है जिसमें प्रत्येक विषय को सरलतम करके प्रश्नोत्तर शैली में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।
जिस महाविद्यालय को प्रारंभ करने की पहल बा. ब्र. बसन्त जी ने की है वह द्वितीय वर्ष में प्रवेश कर रहा है। समाज अत्यंत भाग्यशाली है कि समाज को दिशा देने वाले संत जो जन-जन में तारण स्वामी की वाणी को पहुंचा रहे हैं, वे इस महाविद्यालय को ऊँचाइयों तक पहुँचाने के लिये कृत संकल्पित हैं।
जिन जीवों को सत्य तत्व को समझने और निर्णय करने की जिज्ञासा है तथा जो शास्त्रों का स्वाध्याय और चर्चा करके अनेकान्त, निमित्त, उपादान, निश्चय-व्यवहार आदि की सच्ची व्याख्या समझना चाहते हैं। हेय-उपादेय क्या है, प्रत्येक द्रव्य की पर्यायों की स्वतंत्रता, क्रमबद्ध पर्याय आदि समझकर जो मोक्षमार्ग में लगना चाहते हैं उनके लिये श्री तारण तरण मुक्त महाविद्यालय द्वारा संचालित कोर्स वरदान साबित होंगे। अतः हमारा यह दायित्व है कि हम इन पुस्तकों के माध्यम से सरल भाषा में सिद्धांतों को और स्वयं को जानने का प्रयास करें तथा अन्य जिज्ञासु जीवों भी को प्रेरित करें ताकि समाज में सभी भव्य जीव अंधविश्वास एवं लोक मूढ़ता को छोड़ने का संकल्प लेवें तथा तीर्थंकर भगवन्तों की पावन देशना को आत्मसात् कर परम तत्व को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हों। इन्हीं मंगल भावनाओं
सहित..
डॉ. प्रो. उदय कुमार जैन
प्राचार्य श्री तारण तरण मुक्त महाविद्यालय
छिंदवाड़ा (म.प्र.)