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श्री तारण तरण अध्यात्म पूजा (शुद्ध षट् कर्म)
अध्यात्म आराधना मंगलाचरण
(दोहा) शुद्धातम की वन्दना, करहँ त्रियोग सम्हारि । षट् आवश्यक शुद्ध जो, पालूँ श्रद्धा धारि || १ ॥ प्रणमं आतम देव को, जो है सिद्ध समान । यही इष्ट मेरा प्रभो, शुद्धातम भगवान ॥ २ ॥ भव दु:ख से भयभीत हूँ, चाहूँ निज कल्याण । निज आतम दर्शन करूँ, पाऊँ पद निर्वाण ॥ ३ ॥
शुद्ध सिद्ध अर्हन्त अरू, आचारज उवझाय । साधु गण को मैं सदा, प्रणमूं शीश नवाय ॥ ४ ॥ वीतराग तारण गुरू, आराधक ध्रुव धाम | दर्शाते निज धर्म को, उनको करूं प्रणाम ॥ ५ ॥
जिनवाणी जिय को भली,करे सुबुद्धि प्रकाश । यातै सरसुती को नमू, करूं तत्त्व अभ्यास ॥ ६ ॥ देव शास्त्र गुरू को नमन, करके बारम्बार | करूं भाव पूजा प्रभो, यही मुक्ति का द्वार || ७ ॥
है देव निज शुद्धात्मा, जो बस रहा इस देह में । मन्दिर मठों में वह कभी, मिलता नहीं पर गेह में । जिनवर प्रभु कहते स्वयं, निज आत्मा ही देव है । जो है अनन्त चतुष्टयी, आनन्द घन स्वयमेव है ॥ १ ॥
जैसे प्रभु अरिहन्त अरू सब, सिद्ध नित ही शुद्ध हैं। वैसे स्वयं शुद्धात्मा, चैतन्य मय सु विशुद्ध है | दिव्य ध्वनि में पुष्प बिखरे, देव निज शुद्धात्मा । यह शुद्ध ज्ञान विज्ञान धारी, आत्मा परमात्मा ॥ २ ॥