SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पादकीय... "तत्ज्ञानं यत्प्रतिसमये सम्यक् आनन्ददायते" ज्ञान वही है जो प्रतिसमय सम्यक् आनन्द की वर्षा से तृप्त करे। उपयोग की आत्म सन्मुख प्रवृत्ति ही निश्चय से ज्ञान - ध्यान है। भारत भूमि ऐसे ज्ञानी-ध्यानी ऊर्ध्वगमन कर्ता तीर्थंकरों की उर्वरा भू रही है। संत श्रीमद जिन तारण - तरण ने "चिदानंद चिंतवनं, चेयन आनन्द सहाव आनन्दं" द्वारा शुद्ध स्वरूप में अविचल चैतन्य परिणति को ही शुद्ध ज्ञान - ध्यान की संज्ञा दी है। आचार्य कुंदकुंद देव ने उन पुरुषों को धन्य, पुरुषार्थी, शूरवीर, पंडित, मनीषी और सम्यक्त्व को कभी मलिन न होने दिया है। वास्तव में "अहमिक्को खलु सुद्धो, णिम्म मओ णाण दंसण समग्गो, तम्हि ठिओ तच्चित्तो, सव्वे एदे खमं णेमि ॥" यह तभी सम्भव है जबकि-"द्रव्य - गुण-पर्याय का, जो नित होवे ज्ञान । शीघ्र मिले सम्यक्त्व पद, पावे पद निर्वाण॥" जैन सिद्धांत के जिस अमृत तत्व को पं. गोपालदास जी वरैया परिभाषित कर रहे है उसे ही बा. ब्र. बसन्त जी भी कहते हैं- "अरिहंत को जो द्रव्य - गुण - पर्याय से पहिचानता। निश्चय वही निजदेव रूपी, स्वसमय को जानता। सुज्ञान का जब दीप जलता है, स्वयं के हृदय में। मोहांध टिक पाता नहीं, आत्मानुभव के उदय में।" जिन धर्म की शुद्ध प्रभावना, वात्सल्य के बिना उपजती नहीं है। प्रभावना के लिए संकल्पित साधर्मी वात्सल्य की यही धारा ज्ञान यज्ञ बनकर छिंदवाड़ा नगरी में स्त्रोतस्विनी हुई है। अध्यात्म रत्न बा. ब्र. श्री बसन्त जी की प्रेरणा ने श्री तारण तरण मुक्त महाविद्यालय का मूर्त रूप ले लिया है। पत्राचार प्रणाली से ज्ञान स्वभावी आत्मा में ज्ञान सुगंध सुरक्षित करने का पुनीत लक्ष्य लेकर "परिचय" वर्ष द्वितीय का पाठ्यक्रम "ज्ञान पुष्प" आपके हाथों का संस्पर्श पा रहा है। __ पंचवर्षीय पाठ्यक्रम के वटवृक्ष में आचार्य श्री जिन तारण स्वामी जी द्वारा रचित चौदह ग्रंथों सहित छहढाला, जैन सिद्धांत प्रवेशिका, तत्वार्थ सूत्र, द्रव्य संग्रह, अध्यात्म - अमृत कलश,योगसार, गुणस्थान परिचय की शाखाएँ हैं। देव गुरु शास्त्र पूजा, बृहद् मंदिर विधि, आचार्य परिचय, अध्यात्म आराधना इस वृक्ष के सुरक्षित पत्र पुष्प हैं। मूल में हमारी सम्यक् श्रद्धा का सिंचन है, जो वृहदाकार सम्यज्ञान, चारित्र को परिपुष्ट करेगा। "ज्ञान पुष्प" का प्रथम पर्ण (अध्याय - १) वंदना प्रथमानुयोग की पीठिका पर शलाका पुरुषों का परिचायक है, काल चक्र हमें सावधान करता है, रत्नत्रय मुक्ति पंथ को साक्षात् करता है। वृहद् मंदिर विधि धर्मोपदेश अखिल भारतीय तारण - तरण दिगंबर जैन समाज की दृढ़ संस्कृति की सूचक तो है ही सम्यग्दर्शन की प्राप्ति में कार्यकारी भी है। इसका अर्थ निरूपण मंदिर विधि के मर्म को रसामृत बनाने में सक्षम है। ज्ञान पुष्प का द्वितीय वर्ष (अध्याय – २) आराधना आचार्य जिन तारण - तरण रचित श्री पंडित पूजा जी ग्रंथ के अर्थ सौंदर्य से सज्जित है।"सिद्धं भवति शाश्वतं" का मार्ग निरूपित करते हए इसमें प्रश्नोत्तर शैली में सम्यग्ज्ञान को शब्दांकित किया गया है। पंचार्थ, पंच पदवी और
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy