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________________ ॐ ३. इस काल के प्रारम्भ में मनुष्यों की ऊँचाई ४००० धनुष और आयु २ पल्य की होती है। अंत में घटते-घटते ऊँचाई २००० धनुष एवं आयु १ पल्य की रह जाती है। ४. दो दिन के बाद तीसरे दिन कल्पवृक्ष से प्राप्त बहेड़ा के बराबर आहार लेते हैं। ५. यह काल ३ कोड़ाकोड़ी सागर का होता है। इसमें शरीर का वर्ण श्वेत रहता है। प्रश्न - अवसर्पिणी काल के तीसरे सुषमा-दुःषमा काल की क्या विशेषताएँ हैं? उत्तर - १. द्वितीय काल की अपेक्षा सुख में हीनता होती है। इसे जघन्य भोगभूमि का काल कहते हैं। २. इस काल में जन्मे युगल ४९ दिनों में पूर्ण वृद्धि को प्राप्त हो जाते हैं। जैसे द्वितीय काल में सात प्रकार की वृद्धियों में ५-५ दिन लगते थे, यहाँ ७ -७ दिन लगते हैं। इस काल के प्रारम्भ में मनुष्यों की ऊँचाई २००० धनुष और आयु १ पल्य की होती है। अंत में घटते - घटते ऊँचाई ५०० धनुष एवं आयु १ पूर्व कोटि की रह जाती है। (नोट: ८४ लाख x ८४ लाख ४१ करोड़ वर्ष = १ पूर्व कोटि वर्ष ।) एक दिन के बाद दूसरे दिन कल्पवृक्ष से प्राप्त आंवला के बराबर आहार लेते हैं। यह काल २ कोड़ाकोड़ी सागर का होता है। इसमें शरीर का वर्ण नीला रहता है। कुछ कम पल्य के आठवें भाग शेष रहने पर कुलकरों के जन्म प्रारम्भ हो जाते हैं। वे तब भोगभूमि के समापन से आक्रान्त मनुष्यों को जीवन जीने की कला का उपाय बताते हैं। इन्हें मनु भी कहते हैं। ७. अंतिम कुलकर से प्रथम तीर्थंकर की उत्पत्ति होती है। प्रश्न - अवसर्पिणी काल के चौथे दुःषमा - सुषमा काल की क्या विशेषताएँ हैं? उत्तर - १. इस काल में कर्म भूमि प्रारम्भ हो जाती है। २. कल्प वृक्षों की समाप्ति होने से अब जीवन यापन के लिये असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, विद्या और शिल्प ये षट् कर्म प्रारम्भ हो जाते हैं। ३. शलाका पुरुषों का एवं महापुरुषों का जन्म तथा मोक्ष पुरुषार्थ इसी काल में होता है। चतुर्थ काल का जन्मा जीव पंचम काल में मोक्ष जा सकता है, किन्तु पंचम काल में जन्मा जीव पंचम काल में मोक्ष नहीं जा सकता। युगल संतान के जन्म का नियम नहीं होता। माता-पिता के द्वारा बच्चों का पालन किया जाना प्रारम्भ हो जाता है। इस काल के प्रारम्भ की मनुष्यों की ऊँचाई ५०० धनुष और आयु १पूर्व कोटि की होती है। अंत में घटते - घटते ऊँचाई ७ हाथ एवं आयु १२० वर्ष रह जाती है। इस काल के मनुष्य प्रतिदिन (एक बार) आहार करते हैं। ७. यह काल ४२००० वर्ष कम १ कोड़ाकोड़ी सागर का होता है। इसमें पाँच वर्ण वाले मनुष्य होते हैं। ८. छह संहनन एवं छह संस्थान वाले मनुष्य और तिर्यंच होते हैं। प्रश्न - अवसर्पिणी काल के पांचवें दुःषमा काल की क्या विशेषताएँ हैं? उत्तर - १. इस काल में मनुष्य मंद बुद्धि वाले होते हैं। ____
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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