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________________ १७७ प्रश्न २१० (ब)- अस्थिर नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से शरीर के धातु और उपधातु अपने - अपने स्थान पर नहीं रहते हैं, उसे अस्थिर नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न २११- शुभ नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से शरीर के अवयव सुन्दर (शोभन) होते हैं उसे शुभ नामकर्म कहते हैं। प्रश्न २१२- अशुभ नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से शरीर के अवयव असुन्दर (अशोभन) होते हैं उसे अशुभ नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न २१३- सुभग नाम कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर - जिस कर्म के उदय से दूसरे जीव अपने से (मुझसे) प्रीति करते हैं उसे सुभग नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न २१४- दुर्भग नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से दूसरे जीव अपने से (मुझसे) अप्रीति करते हैं उसे दुर्भग नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न २१५- सुस्वर नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से स्वर अच्छा होता है उसे सुस्वर नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न २१६- दुःस्वर नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से स्वर अच्छा नहीं होता है उसे दुःस्वर नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न २१७- आदेय नाम कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर - जिस कर्म के उदय से कान्तिमान शरीर उत्पन्न होता है उसे आदेय नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न २१८- अनादेय नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर जिस कर्म के उदय से कान्तिमान शरीर नहीं होता है उसे अनादेय नाम कर्म कहते हैं। (अथवा जिस कर्म के उदय से संसारी जीवों के बहुमान्यता उत्पन्न होती है उसे आदेय नामकर्म कहते हैं। उससे विपरीत भाव को उत्पन्न करने वाला अनादेय नामकर्म है।) (-धवला ६/१,९.१,२८/६५) प्रश्न २१९- यश-कीर्ति नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म उदय से संसार में जीव की प्रशंसा होती है उसे यशःकीर्ति नामकर्म कहते हैं। प्रश्न २२०- अयशःकीर्ति नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर जिस कर्म के उदय से संसार में जीव की प्रशंसा नहीं होती है उसे अयशःकीर्ति नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न २२१ तीर्थंकर नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर जिस कर्म के उदय से तीर्थंकर पद प्राप्त होता है उसे तीर्थंकर नाम कर्म कहते हैं। दर्शनविशुद्धि, विनय सम्पन्नता,शील और व्रतों का निरतिचार पालन, अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग, संवेग,शक्ति के अनुसार त्याग,शक्ति के अनुसार तप, साधु समाधि, वैयावृत्य, अर्हद् भक्ति, आचार्य भक्ति, उपाध्याय भक्ति, प्रवचन भक्ति, आवश्यकों का दृढ़ता से पालन, मार्ग प्रभावना और प्रवचन वात्सल्य इन सोलहकारण भावनाओं को विशेषतया भाने से
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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