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घ्राण इन्द्रिय, चक्षु इन्द्रिय, कर्ण इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास और आयु । प्रश्न १२५- भावप्राण किसे कहते हैं ? उत्तर - आत्मा की जिस शक्ति के निमित्त से इन्द्रियादिक अपने कार्य में प्रवर्तते हैं उसे भावप्राण
कहते हैं। प्रश्न १२६ - किस जीव के कितने प्राण होते हैं? उत्तर - एकेन्द्रिय जीव के चार प्राण - स्पर्शन इन्द्रिय, कायबल, श्वासोच्छ्वास और आयु। द्वीन्द्रिय
जीव के छह प्राण - पूर्वोक्त चार - रसना इन्द्रिय और वचनबल । त्रीन्द्रिय जीव के सात प्राण - पूर्वोक्त छह और घ्राण इन्द्रिय । चतुरिन्द्रिय जीव के आठ प्राण - पूर्वोक्त सात और एक चक्षु इन्द्रिय । असैनी पंचेन्द्रिय जीव के नौ प्राण - पूर्वोक्त आठ और एक कर्ण इन्द्रिय । सैनी पंचेन्द्रिय जीव के दश
प्राण - पूर्वोक्त नौ और एक मनबल। प्रश्न १२७- भावप्राण के कितने भेद हैं? उत्तर - भावप्राण के दो भेद हैं - भावेन्द्रिय और भावबल। प्रश्न १२८- भावेन्द्रिय के कितने भेद है? उत्तर - भावेन्द्रिय के पाँच भेद हैं - स्पर्शन, रसना, घ्राण,चक्षु और कर्ण। प्रश्न १२९- भावबल के कितने भेद हैं ? उत्तर - भावबल के तीन भेद हैं - मनबल, वचनबल और कायबल। प्रश्न १३०- वैभाविकगुण किसे कहते हैं? उत्तर - जिस शक्ति के निमित्त से दूसरे द्रव्य से सम्बन्ध होने पर आत्मा में विभाव परिणति होती
है उसे वैभाविकगुण कहते हैं। (यह वैभाविकगुण जीव और पुद्गल - इन दो द्रव्यों में ही होता है। शेष चार द्रव्यों में यह गुण नहीं होता। मुक्तजीवों में इस गुण की शुद्ध स्वाभाविक पर्याय प्रगट हो जाती है।)
(-लघु जैन सिद्धांत प्रवेशिका, प्रश्न ११२ की पाद-टिप्पणी)
१.८.५ जीव के प्रतिजीवी गुणों का विवेचन प्रश्न १३१- अव्याबाध प्रतिजीवी गुण किसे कहते हैं ? उत्तर
- साता और असातारूप आकुलता (वेदनीयकर्म) के अभाव को अव्याबाध प्रतिजीवी गुण
कहते हैं। प्रश्न १३२- अवगाह प्रतिजीवी गुण किसे कहते हैं? उत्तर - परतंत्रता (आयुकर्म) के अभाव को अवगाह प्रतिजीवी गुण कहते हैं। प्रश्न १३३ - अगुरुलघुत्व प्रतिजीवी गुण किसे कहते हैं? उत्तर - उच्चता और नीचता (गोत्रकर्म) के अभाव को अगुरुलघुत्व प्रतिजीवी गुण कहते हैं। प्रश्न १३४ - सूक्ष्मत्व प्रतिजीवी गुण किसे कहते हैं? उत्तर - इन्द्रियों के विषयरूप स्थूलता (नामकर्म) के अभाव को सूक्ष्मत्व प्रतिजीवी गुण कहते हैं।
॥ इति प्रथमोऽध्यायः समाप्तः ॥