________________
प्रश्न २- वर्तमान में मुक्ति क्या है? उत्तर - अज्ञान जनित मान्यताओं को ज्ञान बल से दूर कर आत्मा को स्वभाव से अकर्ता - अभोक्ता
और आनंद स्वरूप जानना । मैं आत्मा परमात्मा ही हूँ ऐसे दृढ़ निश्चय श्रद्धान सहित अपने
ममल स्वभाव में रहना वर्तमान में मुक्ति है। प्रश्न ३- बंध और मोक्ष का आधार क्या है? उत्तर - राग और द्वेष से की गई प्रवृत्ति से जीव को कर्म का बंध होता है। प्रयोजनभूत तत्त्वों के
सच्चे श्रद्धान पूर्वक की गई राग-द्वेष की निवृत्ति से मोक्ष होता है। यही बंध और मोक्ष का
आधार है। प्रश्न ४- आत्मानुभव के अमृत रस की क्या महिमा है? उत्तर - आत्मानुभव के अमृत रस की अद्वितीय महिमा है। अंतर में इसका अनुभव होने पर वीतरागता,
शुक्ल ध्यान, श्रेणी आरोहण, घातिया कर्मों का क्षय, अरिहंत पद और अंत में सिद्ध पद की प्राप्ति होती है।
आचार्य तारण स्वामी कृत ग्रंथों में
सम्यक्चारित्र न्यानं दसन सम्म, सम भावना हवदि चारितं ।
चरनं पि सुद्ध चरनं, दुविहि चरनं मुनेयव्वा ॥ अर्थ-शुद्ध आचरण को चारित्र कहते हैं। सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सहित जो सम भावना (वीतराग परिणति) होती है इसको सम्यक्चारित्र कहते हैं। सम्यक्चारित्र को दो प्रकार का जानना चाहिये।
(श्री ज्ञान समुच्चय सार जी, गाथा - २६२) सम्मत्त चरन पठम, संजम चरनपि होइ दुतियं च ।
सम्मत्त चरन सुद्ध, पच्छादो संजमं चरनं ॥ अर्थ- पहला सम्यक्त्वाचरण चारित्र है और दूसरा संयमाचरण चारित्र है। सम्यक्त्वाचरण चारित्र से शुद्ध होने के पश्चात् संयमाचरण चारित्र प्रगट होता है।
(श्री ज्ञान समुच्चय सार जी, गाथा - २६३) आचरनं स्थिरी भूतं, सुद्ध तत्व तिअर्थक ।
उर्वकारं च वेदंते, तिस्टते सास्वत धुर्व ॥ अर्थ - ज्ञानी जन ॐकार स्वरूप शुद्धात्म तत्त्व का अनुभव करते हैं, शाश्वत ध्रुव स्वभाव में तिष्टते हैं और रत्नत्रय मयी शुद्ध तत्त्व में स्थिर होते हैं यही सम्यक्चारित्र है।
(श्री श्रावकाचार जी, गाथा - २५३)