________________
१४४
गाथा-२९ षट् कमल की साधना से कर्म क्षय कमलं कमल सहावं, षट् कमलं तिअर्थ ममल आनंदं ।
दर्सन न्यान सरूवं, चरनं अन्मोय कम्म संषिपनं ॥ अन्वयार्थ - (कमल) कमल के समान [आत्मा का ज्ञायक] (कमल सहावं) कमल स्वभाव है (षट् कमलं) षट् कमल के द्वारा (तिअर्थ) रत्नत्रय मयी [आत्मा के] (ममल) ममल स्वभाव के (आनंद) आनंद में रहो (दर्सन) सम्यग्दर्शन (न्यान) सम्यग्ज्ञान (चरन) सम्यक्चारित्र मयी (सरूव) स्वरूप में (अन्मोय) लीन होने से (कम्म) कर्म (संषिपन) क्षय हो जाते हैं।
अर्थ - कमल के समान अपना ज्ञायक वीतराग स्वभाव है । षट्कमल की साधना के माध्यम से रत्नत्रयमयी ममल स्वभाव के आनंद में आनन्दित रहो। सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्रमयी स्वरूप में लीन होने से कर्म निर्जरित हो जाते हैं, क्षय हो जाते हैं और मुक्ति की अनंत आनंदमयी संपत्ति प्राप्त हो जाती है। प्रश्न १- कमल स्वभावी आत्मा की क्या विशेषता है ? उत्तर - आत्मा, कमल स्वभाव अर्थात् ज्ञायक स्वभाव है । जैसे - कमल पानी और कीचड़ में
रहता हुआ भी कीचड़ पानी से निर्लिप्त न्यारा रहता है, उसी प्रकार आत्मा, शरीरादि कर्मों से
निर्लिप्त रहता है। यही कमल स्वभावी आत्मा की विशेषता है। प्रश्न २- ध्यान अग्नि की क्या विशेषता है ? उत्तर - जैसे बहुत समय से इकट्ठे हुए ईंधन को वायु से उद्दीप्त आग तत्काल जला देती है, वैसे ही
ध्यान रूपी अग्नि अनंत कर्म रूपी ईंधन को क्षण भर में भस्म कर देती है। यही ध्यान अग्नि की
विशेषता है। प्रश्न ३- आत्मा आनन्द की अनुभूति में कैसे डूबता है ? उत्तर
जैसे पूर्णमासी के पूर्ण चन्द्रमा के योग से समुद्र में ज्वार आता है, उसी प्रकार सिद्ध स्वरूपी पूर्ण शुद्धात्म स्वरूप को स्थिरता पूर्वक निहारने से अन्तर में चेतना उछलती है, चारित्र सुख और वीर्य प्रगट होता है। उस दशा में अनन्त गुणों मयी आत्मा अपूर्व आनन्द की अनुभूति में
डूबता है। प्रश्न ४- षट् कमल की साधना का अभ्यास कैसे करना चाहिये? उत्तर - गुप्त कमल, नाभि कमल, हृदय कमल, कंठ कमल, मुख कमल और विंद कमल यह
छह कमल होते हैं। छत्तीस अर्क में से प्रत्येक कमल की (चित्र में दर्शायी गई पंखुड़ियों की संख्या के अनुसार) पंखुड़ियों में अर्क स्थित करके ध्यान करना चाहिये, यह षट् कमल की साधना है।
___