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________________ गाथा-१७ इष्ट स्वरूप में रहने से अनिष्ट संयोगों का अभाव जिन दिस्टि इस्टि संसुद्ध, इस्टं संजोय तिक्त अनिस्टं। इस्टं च इस्ट रूवं, ममल सहावेन कम्म संषिपनं ॥ अन्वयार्थ - (जिन) [संबोधन] हे अंतरात्मन् !(इस्टि) अपने इष्ट (संसुद्ध) परम शुद्ध स्वभाव पर (दिस्टि) दृष्टि रखो (इस्ट) इष्ट स्वरूप को (संजोय) संजोने से (अनिस्ट) रागादि अनिष्ट भाव (तिक्त) छूट जायेंगे (इस्ट रूवं) अपना इष्ट स्वरूप ही (इस्टं च) प्रयोजनीय है (ममल सहावेन) ममल स्वभाव में रहने से (कम्म) कर्म (संषिपनं) क्षय हो जाते हैं। अर्थ- हे आत्मन् ! अपना इष्ट परम शुद्ध स्वभाव है, इसी पर दृष्टि रखो । अपने इष्ट स्वरूप को संजोने अर्थात् साधना करने से समस्त रागादि अनिष्ट भाव छूट जायेंगे, अपना इष्ट स्वरूप ही प्रयोजनीय है। इसी ममल स्वभाव में रहने से कर्म क्षय हो जाते हैं, निर्जरित हो जाते हैं। प्रश्न १- अपना इष्ट कौन है? उत्तर - रागादि भावों से रहित अनन्त गुणों मयी निज शुद्धात्मा अपना इष्ट है। प्रश्न २- शुद्धात्मा सर्वोत्कृष्ट कैसे है ? उत्तर - अपना शुद्धात्मा सर्वोत्कृष्ट है क्योंकि शद्धात्मा ऐसा द्रव्य है जिसमें से अनन्त सिद्ध पर्याय प्रगट होती हैं इसलिये यह सर्वोत्कृष्ट है। प्रश्न ३- शुद्ध दृष्टि किसे कहते हैं? उत्तर - ज्ञान दर्शन आदि अनन्त शक्तियों का पिंड सर्वोत्कृष्ट आत्मा है, जो दृष्टि ऐसी सर्वोत्कृष्ट वस्तु को स्वीकार करती है, वह शुद्ध दृष्टि है। प्रश्न ४- इष्ट स्वभाव, पर्याय में प्रगट कैसे होता है? उत्तर - सिद्ध स्वरूपी शुद्धात्मा का ध्यान करने से, ममल स्वभाव में लीन होने से इष्ट स्वभाव, पर्याय में प्रगट होता है। प्रश्न ५- जीव के लिये अनिष्टकारी क्या है? उत्तर - मोह राग-द्वेष आदि विभाव परिणाम और पुण्य-पाप आदि कर्मों के निमित्त से जो सुखाभास एवं दु:ख का वेदन होता है यह जीव के लिये अनिष्टकारी है। गाथा - १८ स्वरूप लीनता में अंतर होना ही अज्ञान अन्यानं नहु दिस्ट, न्यान सहावेन अन्मोय ममलं च । न्यानंतरं न दिस्टं, पर पर्जाव दिस्टि अंतर सहसा ॥ अन्वयार्थ - (अन्यानं) स्वरूप के विस्मरण रूप अज्ञान को (नहु) मत (दिस्ट) देखो (न्यान सहावेन) ज्ञान स्वभाव के आश्रय से (ममलं च) ममल स्वभाव में (अन्मोय) लीन रहो (न्यानंत स्वभाव में लीनता रूप ज्ञानांतर अज्ञान] को (न दिस्ट) मत देखो अभीष्ट मत मानो (पर पर्जाव) पर
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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