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छहढाला परिचय
पंडित दौलतराम जी-जीवन परिचय अध्यात्म सृजन के क्षेत्र में विक्रम संवत् १८५५-५६ के मध्य एक नये सूर्य का जन्म हुआ, जो आज भी अध्यात्म आकाश में जगमगा रहा है। पंडित श्री बुधजनजी एवं पंडित श्री द्यानतराय जी ने "छहढाला" की रचना करके उबुद्ध किया परन्तु अध्यात्म के सागर को गागर में भरने वाले पंडित श्री दौलतराम जी ने छहढाला को नया स्वरूप तो दिया ही मोक्षमार्ग को भी स्पष्ट किया है।
पंडित श्री दौलतरामजी का जन्म अलीगढ़ के पास हाथरस जिले के सासनी नामक ग्राम में पल्लीवाल जाति में हुआ। इनके पिता का नाम टोडरमल तथा गोत्र गंगटीवाल था । आपने वस्त्र व्यवसाय (बजाजी) अपनाया, इसके लिये अलीगढ़ आकर रहने लगे। आपका विवाह अलीगढ़ निवासी चिंतामणि बजाज की सुपुत्री के साथ हुआ। आपके दो बड़े पुत्रों में से टीकाराम जी आपके समान कवि हृदय थे। आत्मप्रशंसा से दूर रहकर, अध्यात्म रस में निमग्न रहने वाले कवि पंडित दौलतराम जी की रचनाओं के अतिरिक्त उनका विस्तृत परिचय प्राप्त नहीं है। वे एक सरल स्वभावी, आत्मज्ञानी साधारण गृहस्थ थे। विक्रम संवत् १९२३ मार्गशीर्ष कृष्ण अमावस्या को दिल्ली में उनका देहावसान हुआ था। आपको अपनी मृत्यु का आभास छह दिन पूर्व हो गया था। तब आप गोम्मटसारजी ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद कर रहे थे और उस ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद आपने छह दिन पूर्व ही कर लिया था।
कविवर पंडित दौलतराम जी की प्रमुख दो रचनायें हैं - प्रथम रचना आपको अमृत प्रदान करने वाली "गागर में सागर" की उक्ति को चरितार्थ करने वाली"छहढाला" सर्वत्र प्रसिद्ध है। यह संपूर्ण जैन धर्म के मर्म को अपने में समेटे हुए जन-जन के कंठ का हार बना हुआ अत्यंत लोकप्रिय, संक्षिप्त, सरल, सरस, आध्यात्मिक ग्रंथ है।
दूसरी रचना है "दौलत विलास" यह आपके अध्यात्म रसमय भजनों, पदों, स्तुतियों का संकलन है। इसमें अत्यंत भावपूर्ण"देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर" की उक्ति को चरितार्थ करने वाले लगभग १५० पद हैं। ये भजन मात्र भक्तिमय नहीं हैं; अपितु जैन धर्म के गूढ़ रहस्यों से ओत-प्रोत हैं। इसकी भाषा भी अत्यंत सरल, सुबोध, प्रवाहमयी तथा शब्दों की सार्थकता को सिद्ध करने वाली प्रौढ़तायुक्त है। हिन्दी गीत साहित्य में इन दोनों कृतियों का भाषा, शैली, गेयता की दृष्टि से विशिष्ट स्थान रहा है।
ग्रंथ परिचय छहढाला से तात्पर्य इस ग्रन्थ में वर्णित ढालों से है। जिस प्रकार युद्ध क्षेत्र में शत्रु पक्ष के वारों से बचाव के लिये ढालों का प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार संसार-चक्र में इस जीव को चौरासी लाख योनियों में भटकाने वाले मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्र से बचाव के लिये छहढाला ग्रंथ है।
सर्वप्रथम यह जीव मिथ्यात्व के वशीभूत होकर किन-किन गतियों व किन-किन योनियों में भटकता है - इसका सुविशद् व संक्षिप्त वर्णन पहली ढाल में किया गया है ।
जिनके वशीभूत होकर यह जीव संसार चक्र में जन्म-मरण के अनंत दुःख उठा रहा है, उन मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्र (अगृहीत व गृहीत) का स्वरूप क्या है- इसका वर्णन दूसरी ढाल में सूत्रात्मक शैली में किया गया है।
तीसरी ढाल में मोक्षमार्ग का सामान्य स्वरूप दर्शन व सम्यग्दर्शन का विशेष लक्षण, फल एवं महिमा का वर्णन बहुत ही सुंदर रीति से किया गया है।
चौथी ढाल में सम्यग्ज्ञान का स्वरूप फल एवं महिमा के साथ-साथ सम्यक्चारित्र के अंतर्गत पंचम