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________________ श्री मालारोहण जी अर्थ - श्री केवलज्ञानी भगवान ने अपने ज्ञान में देखा है - शुद्धात्म तत्त्व शुद्ध प्रकाशमयी सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र से परिपूर्ण अनंत सुख स्वभावी है, ऐसे प्रयोजनभूत शुद्धात्म तत्त्व की श्रद्धा करो और तुम भी अपने शुद्धात्म स्वरूप को देखो, अंतरंग में स्वानुभव करो । प्रश्न १- केवलज्ञान की क्या विशेषता है ? उत्तर - - उत्तर प्रश्न २- केवलज्ञानी भगवान के केवलज्ञान की दिव्यता को स्वीकार करने से क्या लाभ है ? केवलज्ञानी भगवान त्रिकालदर्शी हैं, उनके ज्ञान में झलकने वाला त्रिकालवर्ती परिणमन क्रमबद्ध निश्चित अटल है, इस प्रकार सर्वज्ञ की सर्वज्ञता के अनुसार वस्तु स्वरूप स्वीकार करने से अनादि काल से चली आ रही पर में कर्तृत्व, भोर्तृत्व की खोटी बुद्धि का अभाव होकर धर्म की प्राप्ति, वृद्धि और पूर्णतः अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। प्रश्न ३ - केवली भगवान लोकालोक को जानते हैं आत्मा को नहीं, कोई ऐसा कहे तो क्या दोष है ? - उत्तर असंभव दोष आयेगा । जीव ज्ञान मय है। ज्ञान ही जीव का स्वरूप है इसलिये ज्ञान आत्मा को जानता है; यदि ज्ञान आत्मा को न जाने तो वह आत्मा से पृथक् सिद्ध हो किन्तु ज्ञान और आत्मा त्रिकाल अभिन्न हैं और केवलज्ञानी भगवान अपने आत्मा को जानते हैं। सत्य तो यह है कि उन्होंने पहले अपनी आत्मा को जाना तभी केवलज्ञानी हुए। प्रश्न ४ - केवलज्ञानी भगवान पर को जानते हैं, ऐसा कहने में तो उन्हें उत्तर - प्रश्न ५उत्तर - केवलज्ञान तीन लोक, तीन काल के समस्त द्रव्यों को, उनकी पर्यायों को युगपत अर्थात् एक साथ एक समय में जानता है। संपूर्ण लोक- अलोक, द्रव्य क्षेत्र काल भाव सहित अक्रमरूप से केवलज्ञान में झलकते हैं। यदि ऐसे अंनत लोक भी हों, तो भी केवलज्ञान सिंधु में बिंदु के समान हैं। ५४ - बंध का प्रसंग आयेगा ? केवलज्ञानी भगवान अपने स्वरूप में लीन रहते हैं। उनका जानना देखना दर्पणवत् होता है, इच्छा और राग पूर्वक नहीं होता। उनका मोहनीय कर्म क्षय हो गया है, इसलिये देखने जानने से उन्हें बंध नहीं होता। स्वयं स्वतः दिखते हैं। केवलज्ञानी भगवान सबको जानते हैं यह क्यों कहा जाता है ? प्रश्न ६ - शुद्धात्म तत्त्व का क्या स्वरूप है ? उत्तर · केवलज्ञान अतिशय निर्मल ज्ञान है, पूर्ण ज्ञान है, वह इतना निर्मल होता है कि बिना प्रयत्न के दर्पण की तरह सभी पदार्थ उसमें प्रतिबिम्बित होते हैं। चूंकि वह महान ज्ञान केवलज्ञानी को ही प्रगट होता है इसलिये केवलज्ञानी भगवान की महिमा बताने के लिये व्यवहार से कहा जाता है कि वे सबको देखते - जानते हैं। निश्चय से तो केवलज्ञानी भगवान अपने आत्मा को ही देखते - जानते हैं । शुद्धात्म तत्त्व शुद्ध चित्प्रकाशमयी सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्र से परिपूर्ण अनंत सुख स्वभावी कर्म रहित आनंद स्वरूप है।
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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