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________________ श्री मालारोहण जी ५२ उक्त वानी) जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कही हुई वाणी [जिनवाणी] का (हिदै) हृदय में (नित्व) नित्य, हमेशा (चेतयत्वं) चिंतन करता है (मिथ्यात देव) मिथ्यात्व मय देव (गुरु धर्म) गुरु धर्म से (दूर) दूर रहकर (सुद्धं सरूप) शुद्ध स्वरूपी (तत्वार्थ) प्रयोजन भूत तत्त्व अर्थात् शुद्धात्म तत्त्व की (साध) साधना करता है। अर्थ- सम्यक्दृष्टि साधक तीन शल्यों को चित्त से रोककर, हमेशा जिनेन्द्र भगवान की वाणी का हृदय में चिंतन मनन करता है। मिथ्यात्वमय देव, गुरु, धर्म से दूर रहकर अपने शुद्ध स्वरूपी शुद्धात्म तत्त्व की साधना करता है यही संसार के दुःखों से छूटने का उपाय है। प्रश्न १- शल्य किसे कहते हैं? उत्तर - अज्ञान जनित मन के ऐसे विचार जो कांटे की तरह छिदते रहते हैं उन्हें शल्य कहते हैं। प्रश्न २- शल्य कितनी होती हैं और उनका स्वरूप क्या है ? उत्तर - शल्य तीन होती हैं- मिथ्या शल्य, माया शल्य, निदान शल्य इनका स्वरूप इस प्रकार है - आगम की अपेक्षा शल्य का स्वरूप१. मिथ्या शल्य-धर्म के स्वरूप को नहीं जानना । संसार के कारणों को तथा मोक्ष और मोक्ष के कारणों को यथार्थतया नहीं जानना, विपरीत संदेहयुक्त रहना, व्रत धारण करने का अभिप्राय नहीं जानना,दूसरों की देखा देखी या अन्य अभिप्राय से व्रत पालन करने वाला मिथ्या शल्य से युक्त अज्ञानी मिथ्यादृष्टि है। २. माया शल्य - मन वचन काय की वक्र परिणति, पापों को छिपाना, मान प्रतिष्ठा के लोभ से व्रत पालन करना, अंतरंग में पापों से घृणा न होना ऐसे परिणामों वाला जीव अज्ञानी मिथ्यादृष्टि माया शल्य से युक्त रहता है। ३.निदान शल्य- व्रत नियम का पालन करके आगामी ऐहिक अर्थात् इस लोक संबंधी विषय सुखों की अभिलाषा रखने को निदान शल्य कहते हैं। अज्ञानी मिथ्यादृष्टि शल्य सहित होता है, व्रती श्रावक और महाव्रती नि:शल्य होता है। साधना की अपेक्षा शल्य का स्वरूप१. मिथ्या शल्य - मिथ्या अर्थात् झूठी, शल्य अर्थात् कल्पना ऐसा न हो जाये, 'ऐसा न हो गया हो' ऐसे झूठे विकल्प को मिथ्या शल्य कहते हैं। ऐसा न हो जाये' यह विकल्प चैन से नहीं रहने देता, यह शल्य मोह की तीव्रता में और भी दु:खद होती है। २. माया शल्य - 'ऐसा नहीं ऐसा होता' ऐसे मिथ्या विकल्प को माया शल्य कहते हैं। कंचन कामिनी कीर्ति की चाह 'ऐसा नहीं ऐसा होता' सब कुछ होते हुए मिलते हुए भी यह शल्य तृप्त और संतुष्ट नहीं रहने देती। वर्तमान का सुख भी नहीं भोगने देती, हमेशा माया के चक्कर में ही भ्रमित करती रहती है। ३. निदान शल्य- 'ऐसा करना या ऐसा करूंगा' कर्तृत्व से पूर्ण ऐसे अहं रूप मिथ्या विकल्प को निदान शल्य कहते हैं। यह शल्य भूत भविष्य में भटकाती रहती है, वर्तमान में नहीं जीने देती। इसके कारण हिंसादि पापों में प्रवृत्ति होती है। इस शल्य के कारण मन सक्रिय और कठोर रहता है।
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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