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________________ श्री मालारोहण जी ४४ श्री मालारोहण जी संक्षिप्त परिचय सम्यग्दर्शन सब रत्नों में महारत्न है। सब योगों में उत्तम योग है। सब ऋद्धियों में महा ऋद्धि है। सम्यग्दर्शन सर्व सिद्धियों का प्रदाता है। तीन काल और तीन लोक में जीव को सम्यक्त्व के समान कुछ भी कल्याणकारी नहीं है और मिथ्यात्व के समान कोई अकल्याणकारी नहीं है । सम्यग्दर्शन के समान कोई मित्र नहीं और मिथ्यात्व के समान कोई शत्रु नहीं है। सम्यग्दर्शन समस्त लोक का आभूषण है और मोक्ष होने पर्यन्त आत्मा को संसार में दुःखी नहीं होने देता । श्री मालारोहण जी ग्रंथ में आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज ने ऐसे अतिशय महिमामय सम्यग्दर्शन का प्रतिपादन किया है। आत्मानुभव सहित सम्यग्दृष्टि संसार के दुःखों से मुक्त होने का सत्पुरुषार्थ करता है। इस प्रकार विभिन्न आयामों से ग्रंथ की विषय वस्तु को स्पष्ट किया है। समवशरण में भगवान महावीर स्वामी से राजा श्रेणिक का जो जिज्ञासा और समाधान परक संवाद है, अत्यंत सुंदर विधि से उसका विवेचन किया गया है। यह सम्यग्दर्शन स्वरूप ज्ञान गुण माला किसी बाहरी वेष से, बाहरी ज्ञान से, धन आदि लौकिक पदार्थों से प्राप्त नहीं होती, शुद्ध दृष्टि ही इसकी प्राप्ति का एक मात्र उपाय है। सम्यग्दृष्टि जीव अपनी पात्रता और पुरुषार्थ प्रमाण इसका स्व संवेदन करते हैं। प्रथम भूमिका में बुद्धि पूर्वक अपना निर्णय करना अनिवार्य है, इस निर्णय के आधार पर आत्मानुभव रूप सम्यग्दर्शन रत्न अंतर में प्रकाशमान होता है। विशेष बात यह है कि जो जीव संसार के दुःखों से छूटना चाहते हैं, विरक्त हैं, उन्हें आत्मोन्मुखी दृष्टि पूर्वक सम्यग्दर्शन प्रगट होता है। वही जीव मुक्ति के अविनाशी सुख को प्राप्त करते हैं। अनन्त सिद्ध परमात्मा जिन्होंने सिद्धि को प्राप्त किया है उन्होंने सम्यग्दर्शन को धारण करके ही मुक्ति को उपलब्ध किया है। जो भी भव्य जीव सम्यक्त्व को धारण करेंगे वे भी मुक्ति श्री के अतीन्द्रिय सुख में रमण करने वाले मुक्ति रमापति त्रिलोकीनाथ सिद्ध भगवन्त होंगे। ऐसे अनिर्वचनीय अपूर्व महिमा से सम्पन्न महान सम्यग्दर्शन का वर्णन इन बत्तीस गाथाओं में निबद्ध है। समयसार के सार स्वरूप गागर में सागर की उक्ति को चरितार्थ करने वाला यह श्री मालारोहण जी ग्रंथ है। इस ग्रंथ के सम्बंध में जिज्ञासा उठती है कि श्री मालारोहण जी ग्रंथ महान ग्रंथ है, इसमें सम्यग्दर्शन का प्रतिपादन किया गया है इसलिये इसकी पवित्रता अपने आपमें प्रमाणित है, फिर ऐसे महान ग्रंथ को विवाह के अवसर पर क्यों पढ़ा जाता है ? उसका समाधान इस प्रकार है कि सांसारिक जीवन अनेक प्रकार के उतार-चढ़ाव भरा जीवन है और वहाँ हर परिस्थिति में धर्म की अनिवार्य आवश्यकता होती है। बिना धर्म की शरण के संसारी जीवन सुख मय नहीं हो सकता । इसका प्रमुख उद्देश्य धर्म साक्षी पूर्वक गृहस्थ जीवन में प्रवेश करना है व गृहस्थ दशा में रहते हुए भी सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का पुरुषार्थ बुद्धिपूर्वक करते रहना है । सांसारिक चक्रव्यूह से निकलने का एकमात्र उपाय सम्यग्दर्शन ही है। श्री मालारोहण ग्रंथ सम्यग्दर्शन की कला सिखाता है ।
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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