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ज्ञान विज्ञान भाग-२
बात को कथन करने की चारों अनुयोगों की शैली में भिन्नता है। अनुयोगों की कथन पद्धति में भिन्नता होने पर भी समन्वय है। अपेक्षा के सही अभिप्राय को समझना ही अनेकांत है। चार अनुयोग वस्तु स्वरूप को समझने के द्वार हैं। इस प्रकार जिनवाणी के यथार्थ स्वरूप को
जानना चाहिये। प्रश्न - किस अनुयोग से क्या उपलब्धि होती है? उत्तर - सापेक्षता के सिद्धांत पूर्वक, निश्चय और व्यवहार नय के द्वारा अनुयोगों से यथार्थ वस्तु स्वरूप का ज्ञान होता है। प्रत्येक अनुयोग से जो उपलब्धि होती है वह इस प्रकार है
बनती हैं भूमिकायें प्रथमानुयोग से । आती हैं योग्यतायें करणानुयोग से || पकती हैं पात्रतायें चरणानुयोग से ।
तब स्वानुभव झलकता द्रव्यानुयोग से ॥ जिनवाणी नमस्कार मंत्र-प्रथमं करणं चरणं द्रव्यं नमः।।
गुरु भक्ति आओ हम सब मिलकर गायें, गुरुवाणी की गाथायें । है अनन्त उपकार गुरु का, किस विधि उसे चुका पायें ।
वन्दे तारणम् जय जय वन्दे तारणम्. चौदह ग्रन्थ महासागर हैं, स्वानुभूति से भरे हुए। उन्हें समझना लक्ष्य हमारा, हम भक्ति से भरे हुए । गुरु वाणी का आश्रय लेकर, हम शुद्धातम को ध्यायें ॥
है अनन्त उपकार ....... कैसा विषम समय आया था, जब गुरुवर ने जन्म लिया। आडम्बर के तूफानों ने सत्य धर्म को भुला दिया । तब गुरुवर ने दीप जलाया, जिससे जीव सम्हल जायें ॥
है अनन्त उपकार....... अमृतमय गुरु की वाणी है, हम सब अमृत पान करें। जन्म जरा भव रोग निवारें, सदा धर्म का ध्यान धरें ॥ हम अरिहंत सिद्ध बन जायें, यही भावना नित भायें ॥
है अनन्त उपकार... शुद्ध स्वभाव धर्म है अपना, पहले यही समझना है। क्रिया काण्ड में धर्म नहीं है, ब्रह्मानंद में रहना है ॥ जागो जागो रे जग जीवो, सत्य सभी को बतलायें ।
है अनन्त उपकार...