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गुरु स्तुति
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प्रश्न २ - अति लघु उत्तरीय प्रश्न -
(क) संसार व देह की वासना किसे नहीं रहती? उत्तर - जो भोगों से विरत रहते हैं और पर की आस नहीं रखते ऐसे वीतरागी सदगुरु को संसार
व देह की वासना नहीं रहती। (ख) चेल एवं निश्चेल से क्या तात्पर्य है? उत्तर - चेल अर्थात् वस्त्र तथा निश्चेल अर्थात् वस्त्र रहित । यही चेल एवं निश्चेल से तात्पर्य है। (ग) चेतन और पर द्रव्य का संयोग कैसा है ? उत्तर - चेतन और पर द्रव्य का संयोग संसारी अवस्था में अनादि काल से है। (घ) आत्म अनुभव के बिना यह जीव क्या कहलाता है ?
उत्तर - आत्म अनुभव के बिना यह जीव बहिरात्मा कहलाता है। प्रश्न३ - दीर्घ उत्तरीय प्रश्न -
(क) सद्गुरु और कुगुरु में क्या अंतर है ? उत्तर - १. जिन्होंने अपनी अनुभूति में आत्म दर्शन कर सम्यक्त्व रवि को प्रकाशित किया व मिथ्यात्व रागादि रिपुओं (शत्रुओं) पर विजय पाई है वे वीतरागी सद्गुरु हैं। जो सदैव ज्ञान चारित्र में लीन रहकर ज्ञान घन हो गये हैं। जिन्हें संसार, देह, भोग और पर की आशा से विरक्ति है जो निर्ग्रन्थ हैं। दुर्ध्यान (आर्त रौद्र ध्यान) का जिन्होंने परित्याग कर धर्म, शुक्ल ध्यान को अंगीकार किया ऐसे वीतरागी, सन्मार्गी एवं वीतरागता के पोषक सद्गुरु हैं। २.जो नाम अथवा कामवश या अहं पूर्ति के लिये या पेट भरने के लिये खोटा उपदेश देते हैं, वे पत्थर की नौका के समान संसार समुद्र में डुबाने वाले कुगुरु हैं। ऐसे कुगुरु की शरण से
भव-भव तक महा दु:ख की प्राप्ति होती है। (ख) ध्यान किसे कहते हैं ? उनके भेद-प्रभेद बताइये? उत्तर - स्वरूप की प्रवृत्ति के सद्भाव रूप एकाग्रता पूर्वक चिंता का निरोध ध्यान है। सामान्यत: चित्त की एकाग्रता को ध्यान कहते हैं। एकाग्र चिंता निरोधो ध्यानम्' ध्यान के भेद-प्रभेद ध्यान के चार भेद हैं और उनके भी चार-चार प्रभेद हैं - १. आर्त ध्यान - १. इष्ट वियोग २. अनिष्ट संयोग ३. पीड़ा चिंतवन ४. निदान बंध। २. रौद्र ध्यान - १. हिंसानंदी २. मृषानंदी ३. चौर्यानंदी ४. परिग्रहानंदी। ३. धर्म ध्यान - १. आज्ञा विचय २. अपाय विचय ३. विपाक विचय ४. संस्थान विचय । संस्थान विचय के चार भेद - पदस्थ ध्यान, पिंडस्थ ध्यान, रूपस्थ ध्यान, रूपातीत ध्यान। ४. शुक्ल ध्यान - १. पृथक्त्व वितर्क वीचार २. एकत्व वितर्क अवीचार ३. सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाति ४. व्युपरत क्रिया निवृत्ति ।