SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तं रयन रूव रूव रूव अप्प रूव चिंतनं । आनंद नंद सुद्ध नंद परमानंद नंदिन ॥ अनेय भेय अनिस्ट रूव पर पर्जाव मुक्तयं । तं ममल न्यान ममल झान सिद्धि सुह संपत्तयं ॥ ८ ॥ भावार्थ :- (रूव रूव रूव तं रयन) अपने सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र अर्थात् रत्नत्रयमयी (अप्प रूव चिंतनं) आत्म स्वरूप का चिंतन करो, शुद्धात्म स्वरूप (नंद आनंद) नंद आनंद (परमानंद) परमानंद मयी (सुद्ध) शुद्ध है (नंद) इसी के आनंद में (नंदिन) आनंदित रहने से (अनेय भेय) अनेक भेद वाली (अनिस्ट रूव पर पर्जाव मुक्तय) अनिष्ट रूप पर पर्यायें छूट जायेंगी, और (तं ममल न्यान) ममल ज्ञान स्वभाव के (ममलझान) परम शुद्ध ध्यान में लीन होने पर (सिद्धि सुह) मोक्ष सुख की (संपत्तय) सम्पत्ति प्राप्त होगी। त्वं देव देव परम देव अप्प हियं चिंतनं । पर सुभाव अनिस्ट रूव अप्प सहाव निकन्दनं ॥ जो एय भेय अप्प सहाव तिअर्थ अर्थ जोयनं । सो पंच दिप्ति न्यान इस्टि मुक्ति पंथ सोहिनं ॥ ९ ॥ भावार्थ :-[हे आत्मन् !] (त्वं) तुम (देव) देवों के (परम देव) परम देव (अप्प देव) निज आत्म देव का (हियं चितन) हृदय में चिंतन करो अर्थात् भावना भाओ (अप्प सहाव) आत्म स्वभाव के आश्रय से (अनिस्ट रूव) अनिष्टकारी (पर सुभाव) विभाव भाव (निकंदन) दूर हो जाते हैं (जो) जो ज्ञानी (एय भेय) एक मात्र (अर्थ) प्रयोजनीय (तिअर्थ) रत्नत्रयमयी (अप्प सहाव) आत्म स्वभाव को (जोयन) संजोते हैं (सो) वह (इस्टि) परम आराध्य (दिप्ति) दैदीप्यमान (पंच) पंचम (न्यान) केवलज्ञान स्वभाव के आश्रय से (मुक्ति पंथ) मुक्ति मार्ग का (सोहिन) शोधन करते हैं। अन्मोय न्यान गुन अनंत सुद्ध पंथ दर्सियं । तं सुद्ध भाव जिन सहाव विषय राग तिक्तयं ॥ सो भव्य लोय न्यान उत्तु ममल भाव जुत्तयं । सो कम्मु मुक्कु मुक्ति पंथ सिद्धि सुह सम्पत्तयं ॥ १० ॥ भावार्थ :- (न्यान) ज्ञान आदि (अनंत गुन) अनंत गुणोंमयी स्वभाव की (अन्मोय) अनुमोदना से (सुद्ध पंथ दर्सिय) निश्चय मोक्षमार्ग प्रगट होता है (तं सुद्ध भाव) शुद्ध भाव को ग्रहण कर (जिन सहाव) वीतराग स्वभाव में रहने से (विषय राग तिक्तयं) विषय और राग छूट जाता है [इसलिये (सो भव्य लोय) जगत के भव्य जीवो ! [जो अपना] (न्यान) ज्ञानमयी (ममल भाव) ममल स्वभाव (उत्तु) जिनेन्द्र भगवान ने बतलाया है, इसकी (जुत्तयं) आराधना से संयुक्त रहो (सो) यही (मुक्ति पंथ) मोक्षमार्ग है, इस पर चलने से (कम्मु मुक्कु) कर्मों से मुक्त होकर (सिद्धि सुह) सिद्धि सुख की (सम्पत्तयं) संपत्ति प्राप्त होती है। -घत्ताइय सहाव संजुत्तऊ , न्यान मई अनुरत्तक । न्यानेन न्यान आलम्बनऊ,परमप्पु सिद्धि संपत्तऊ ॥ ११ ॥ भावार्थ :- (इय) इस प्रकार (सहाव संजुत्तऊ) स्वभाव साधना से संयुक्त रहते हुए (न्यानेन
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy