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श्री ममलपाहुड़ जी फूलना - ११
१६२ प्रश्न ७ - जिनेन्द्र परमात्मा ने अमृत रस किसे कहा है ? उत्तर - परम प्रयोजनीय रत्नत्रयमयी ममल स्वभावी आत्मा आनन्द रसमय है, उसमें रमण करने से
अतीन्द्रिय आनन्द की अनुभूति होती है वही अमृत रस है। प्रश्न ८ - भय शल्य शंका कब उत्पन्न नहीं होती? उत्तर - ममल स्वभाव में रमण करने से वीतरागता आती है, वीतरागता ही धर्म है। वीतराग स्वरूप
त्रिकाली ध्रुव ममलह ममल स्वभाव का प्रकाश होने पर भय शल्य शंका उत्पन्न नहीं होती। प्रश्न ९ - प्राप्त ज्ञान का सदुपयोग करने से क्या लाभ है? उत्तर - ज्ञान गुण प्रत्येक जीव में परिपूर्ण है। मनुष्य पर्याय में जो क्षयोपशम ज्ञान मिला है उसका
उपयोग स्वद्रव्य में करने से सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के योग बनते हैं, आत्म शांति मिलती है,
ज्ञानादि गुणों में वृद्धि होती है, केवलज्ञान की प्राप्ति होती है तथा सिद्ध पद प्रगट होता है। प्रश्न १०- प्राप्त ज्ञान का दुरुपयोग करने से क्या हानि है ? उत्तर - प्राप्त क्षयोपशम ज्ञान को इन्द्रियों के व्यापार में लगाना, विषयों में रमण करना, परद्रव्य और
परभावों में लगाना, प्राप्त ज्ञान का दुरुपयोग है। रागादि विकारी भाव संसार के बीज हैं, निगोद में ले जाने वाले हैं। प्राप्त क्षयोपशम ज्ञान का सदुपयोग करने से सिद्ध अवस्था मिलती है और दुरुपयोग करने से निगोद अवस्था मिलती है, जहाँ ज्ञान का अक्षर के अनन्तवें भाग प्रमाण
उघाड़ रहता है। प्रश्न ११- परम धर्म में सहकारी क्या है? उत्तर - परम श्रेष्ठ, परम पारिणामिक भाव ही परम धर्म में सहकारी है। प्रश्न १२- धर्म का आश्रय लेने से जीव को क्या उपलब्धियाँ होती हैं? उत्तर - धर्म के आश्रय से जीव को जो विशेष उपलब्धियाँ होती हैं वे इस प्रकार हैं
०१. ज्ञायक भाव प्रगट होता है। ०२. अमृत रस की अनुभूति होती है। ०३. रागादि भाव विला जाते हैं / क्षय हो जाते हैं। ०४. समभाव प्रगट होता है। ०५. पर्यायी भयों का अभाव हो जाता है। ०६. रत्नत्रयमयी अभेद स्वभाव की अनुभूति होती है। ०७. मुक्ति मार्ग प्रगट हो जाता है। ०८. कर्मों पर विजय प्राप्त होती है। ०९. जन्म-मरण का अभाव हो जाता है। १०. आनन्द परमानंदमयी शिव पद की प्राप्ति होती है।