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श्री
ममलपाहुड़ जी फूलना - १
श्री ममलपाहुड़ जी फूलना
१ श्री देव दिप्ति गाथा (फूलना क्र. १)
देव को स्वरूप सहित नमस्कार, शुद्धात्म स्वरूप की महिमा)
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( विषय तत्वं च नंद आनंद मउ, चेयननंद सहाउ ।
परम तत्व पद विंद पउ नमियो सिद्ध सुभाउ ।। १ ।।
भावार्थ:- (तत्त्वं शुद्धात्म तत्व (नंद आनंद मउ ) नन्द आनन्द मयी (चेयननंद सहाउ) चिदानंद स्वभावी है (च) और [यही] (परम तत्त्व ) परम तत्त्व (पद विंद ) विंद पद अर्थात् निर्विकल्प स्वरूप है (पउ) इसकी अनुभूति करते हुए [ मै ] (सिद्ध सुभाउ) सिद्ध स्वभाव को (नमियो ) नमस्कार करता हूँ । जिनवर उत्तउ सुद्ध जिन, सिद्धह ममल सहाउ ।
न्यान विन्यानह समय पउ, परम निरंजन भाउ ।। २ ।।
भावार्थ :( जिनवर उत्तउ ) जिनेन्द्र परमात्मा ने कहा है कि (जिनु) हे अंतरात्मन् ! (सुद्ध) आत्मा त्रिकाल शुद्ध (सिद्धह) सिद्ध स्वरूपी (ममल सहाउ) ममल स्वभावी है (न्यान विन्यानह) ज्ञान विज्ञान अर्थात् भेदविज्ञान से (परम निरंजन) सदैव कर्म मलों से रहित (समय) शुद्धात्मा की (भाउ) भावना भाओ [और ] (पउ) इसी को प्राप्त करो ।
परम पयं परमानु मुनि, परम न्यान सहकार |
परम निरंजन सो मुनहु, ममलह ममल सहाउ ।। ३ ।।
भावार्थ :(मुनि) वीतरागी साधु (परम न्यान) श्रेष्ठ ज्ञान अर्थात् सम्यग्ज्ञान की (सहकार) सहकारिता पूर्वक (परम पर्य) परम पद को (परमानु) प्रमाण अर्थात् अनुभव से स्वीकार करते हैं [इसलिये तुम भी] (सो) अपने इसी (परम निरंजन) संपूर्ण कर्म मलों से रहित (ममलह ममल सहाउ) ममलह ममल स्वभाव का ( मुनहु) चिंतन मनन करो ।
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भय विनासु भवु जु मुनहु, परमानंद सहाउ
परम निरंजन सो मुनहु, ममलह सुद्ध सहाउ ।। ४ ।।
भावार्थ:- ( भवुजु ) जो भव्य जीव (भय विनासु) समस्त भयों को छोड़कर [अपने] (परमानंद सहाउ) परमानंद मयी स्वभाव का ( मुनहु) चिंतन, मनन, आराधन करते हैं (सो) वह [ज्ञानी] (ममलह सुद्ध सहाउ) शुद्ध ममल स्वभाव का ( मुनहु) मनन आराधन करते हुए (निरंजन) कर्म मलों से रहित (परम) श्रेष्ठ पद को प्राप्त कर लेते हैं ।
देव जु दिट्ठह जिनवरहं, उवनउ दाता देउ ।
न्यान विन्यानह ममल पउ, सु परम पउ जोउ ॥ ५ ॥
भावार्थ:- (जिनवरहं) जिनेन्द्र भगवान ने (देव जु) जिस देवत्व पद को (दिट्ठह) देखा है [ वह ]
( न्यान विन्यानह) ज्ञान विज्ञानमयी (ममल पउ) ममल पद है (सु परम पउ) अपने इस परम पद को (जोउ) संजोने से (देउ दाता) देवत्व पद (उवनउ) प्रगट हो जाता है।