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________________ छहढाला - छटवीं ढाल १४० प्रश्न २ - द्रव्य लिंगी मुनि किसे कहते हैं? उत्तर - जिनको निश्चय सम्यग्दर्शन ज्ञान की प्रगटता नहीं है किन्तु जो अट्ठाईस मूल गुणों का निरतिचार पालन करते हैं उन्हें द्रव्य लिंगी मुनि कहते हैं। प्रश्न३ - प्रतिक्रमण किसे कहते हैं? उत्तर - किए हुए दोषों के शोधन करने को प्रतिक्रमण कहते हैं। प्रश्न ४ - स्वाध्याय किसे कहते हैं? उत्तर - स्वाध्याय शब्द तीन पदों से मिलकर बना है। स्व-अधि-आय । स्व - अपना, अधि - ज्ञान, आय = लाभ अर्थात् जिस क्रिया से आत्मज्ञान का लाभ होता है उसे स्वाध्याय कहते हैं। अपने आत्म स्वरूप को जानकर, पहिचानकर, उसमें लीनतारूप शुद्धि से आत्मज्ञान का लाभ होता है अतः भूमिकानुसार यह प्रगट शुद्धि ही निश्चय स्वाध्याय है । आत्मज्ञान में कारणभूत वीतरागता पोषक जिनवाणी को विनयभक्तिपूर्वक पढ़कर, आत्महित हेतु अध्ययन, मनन, चिंतन करना आदि क्रिया व्यवहार स्वाध्याय है। प्रश्न ५ - प्रत्याख्यान किसे कहते हैं? उत्तर - वर्तमान और भविष्यकाल के दोषों को दूर करने के लिए जो उपवास तथा सावध (पाप क्रियाओं) का त्याग किया जाता है उसे प्रत्याख्यान कहते हैं। प्रश्न ६ - कायोत्सर्ग किसे कहते हैं ? उत्तर - निद्रा पर विजय प्राप्त करने के लिये, व्रतों में लगे अतिचारों की विशुद्धि के लिये, कर्मों की निर्जरा के लिये, तप की वृद्धि के लिये निश्चल खड़े होना और शरीर से ममत्व भाव त्याग कर आत्मस्थ होना कायोत्सर्ग है। प्रश्न ७ - तप किसे कहते हैं, तप के कितने भेद है? उत्तर - इच्छाओं के निरोध को तप कहते हैं। तप के दो भेद हैं - १. बाह्य तप २. अभ्यन्तर तप। बाह्य तप के ६ भेद हैं - १. अनशन २. अवमौदर्य (ऊनोदर) ३. वृत्ति परिसंख्यान ४. रस परित्याग ५. विविक्त शय्यासन ६. कायक्लेश। अभ्यन्तर तप के छह भेद हैं- १. प्रायश्चित्त २. विनय ३. वैयावृत्य ४. स्वाध्याय ५. व्युत्सर्ग ६. ध्यान। प्रश्न ८ - धर्म के कितने लक्षण हैं? उत्तर - धर्म के १० लक्षण हैं - १. उत्तम क्षमा २. उत्तम मार्दव ३. उत्तम आर्जव ४. उत्तम सत्य ५. उत्तम शौच ६.उत्तम संयम ७. उत्तम तप ८. उत्तम त्याग ९. उत्तम आकिंचन्य १०. उत्तम ब्रह्मचर्य। प्रश्न ९ - ध्यान, ध्याता, ध्येय का क्या स्वरूप है? उत्तर - ध्यान- अपने चित्त की वृत्ति को सब ओर से रोककर एक ही विषय में लगाना ध्यान है। ध्याता - ध्यान करने वाले को ध्याता कहते हैं। ध्येय- जिसका ध्यान किया जाता है वह ध्येय है।
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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