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छहढाला - चौथी ढाल
सम्यक्धर्म प्राप्त न करना मूढ़ता है।
सम्यग्ज्ञान प्राप्त करके फिर सम्यक्चारित्र प्रगट करना चाहिये। सम्यक्चारित्र की भूमिका में जो कुछ भी राग रहता है वह श्रावक को अणुव्रत और मुनि को पंच महाव्रत के प्रकार का होता है, उसे सम्यकदृष्टि पुण्य मानते हैं।
जो श्रावक निरतिचार समाधिमरण को धारण करता है वह समता पूर्वक आयु पूर्ण होने से योग्यतानुसार सोलहवें स्वर्ग तक उत्पन्न होता है और वहाँ से आयु पूर्ण होने पर मनुष्य पर्याय प्राप्त करता है पश्चात मुनिपद धारण करके मुक्ति को प्राप्त करता है। इसलिये सम्यग्दर्शन ज्ञान पूर्वक चारित्र का पालन करना प्रत्येक आत्मार्थी जीव का कर्तव्य है । निश्चय सम्यक्चारित्र ही सच्चा चारित्र है ऐसी श्रद्धा करना तथा उस भूमिका में जो श्रावक और मुनिव्रत के विकल्प उठते हैं वह सच्चा चारित्र नहीं, चारित्र में होने वाला राग है किन्तु उस भूमिका में वैसा राग आये बिना नहीं रहता और उस सम्यक्चारित्र में ऐसा राग निमित्त होता है। उसे सहचर मानकर व्यवहार सम्यक्चारित्र कहा जाता है। व्यवहार सम्यक्चारित्र को सच्चा सम्यक्चारित्र मानने की श्रद्धा छोड़ देना चाहिये ।
(ख) भेद - प्रभेद लिखिये
(१) काल - निश्चय काल, व्यवहार काल ।
(२) विकथा स्त्री कथा.
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(३) श्रावक व्रत - पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रत कुल बारह व्रत हैं।
(४) रोगत्रय जन्म, जरा, मृत्यु ।
(ग) चौथी ढाल के आधार पर भेद-प्रभेद लिखिये -
(अ) प्रमाद के भेद-प्रभेद
पंचेन्द्रिय विषय
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स्त्री कथा, भोजन कथा, राज कथा, चोर कथा ।
स्पर्श रस गंध वर्ण शब्द
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विकथा
- स्त्री कथा
- भोजन कथा
- राज कथा
- चोर कथा
प्रमाद
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कषाय
क्रोध मान