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________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला १. १. है राजा भजन - १३५ तर्ज - बहारो फूल बरसाओ... चिदानन्द ज्ञान के धारी.तुम्ही हो शान्ति के झरना। सम्हालो ज्ञान का वैभव, तुम्हें मुक्ति श्री वरना॥ अनादि से न पाया था, उसे हमने अभी पाया। ज्ञान ही ज्ञान की मूरति, इसे लख आज मैं पाया ।। त्रिकाली को सुमर करके, अष्ट कर्मों को अब हरना...चिदानंद... अमूर्तिक आत्मा मेरी, यही ज्ञाता यही दृष्टा। अजर है और अविनाशी, अनुपम गुण की है सृष्टा॥ ये अद्भुत है विलक्षण है, इसी में लीन अब रहना...चिदानंद... अतीन्द्रिय ज्ञान की धारी, ये निज में निज को पाती है। ज्ञान से ज्ञान में रहकर, उसी में वृद्धि पाती है। निजातम ज्ञान की ज्योति, ज्ञानामृत को सदा चखना...चिदानंद... ये मन वच तन को वश में कर, चेतन में लीन हो जाओ। ममल भावों में नित ही वह, उसी मस्ती में खो जाओ । उसी में हर्षना विलसना, उसी में विगसित होना है...चिदानंद... ममल शुद्धात्म की चर्चा, अलौकिक और न्यारी है। निजातम में रमण करके, खिली रत्नत्रय की क्यारी है। ज्ञान की भावना ऐसी, ज्ञानी को ही सदा करना...चिदानंद... भजन - १३६ तर्ज- हम जवानी को अपने.... हम आतम से आतम में,सदा को समाये। हम पुद्गल से नाता, तोड़ चले आये॥ है उजाला बहुत ज्ञान की रस्मियों में। है अन्धेरा बहुत अज्ञान की किस्तियों में ॥ ममल भाव की नौका पार लगाये...हम... २. है आतम अनुपम सुख की लड़ी है। इसे प्राप्त करने स्वयं में अड़ी है ॥ हम अमृत रसायन में डूब-डूब जायें...हम... दर्शन ज्ञान चारित्र से लगन लगी है। भय शल्य गारव माया छूटें भावना जगी है। निज सिद्ध स्वरूप हमें रास्ता दिखाये...हम... ४. स्वानुभूति की धारा, जिस क्षण भी बहेगी। शुद्धात्मा हमारी, उसी में रहेगी । निज ज्ञान की सत्ता, हमें पार लगाये...हम... ॐ नमः सिद्धं की धुन सर्वांग चल रही है। ध्रुव ध्रुव की ये धारा ध्रुव धुव में बह रही है। निज सिद्ध स्वरूप हमें मुक्ति बताये...हम... *मुक्तक किसी के मान और सम्मान से मैं क्यों जूहूं। न्याय की तौल पै रख के मैं बात को बूझू ॥ परिणमन कैसा धरा पै है इसे मैं ही लेखू । टंकोत्कीर्ण आतम के झरने को आज मैं देखू॥ *मुक्तक* न लेना है न देना है न पाना है न खोना है। आतम से आतम को पाकर अन्तर्मुखी अब होना है। चतुर्गति के दुःख से अगर बचना चाहो हे नर। अतीन्द्रिय आतम के आनन्द में मगन होना है। आनन्द सागर में डुबकी लगाना है । अपने में अपने से अपने को पाना है । चन्द्र तू चेत जा इस जग में क्या करना है। अक्षय अनन्त स्वानुभूति में अब समाना है।
SR No.009712
Book TitleAdhyatma Chandra Bhajanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakanta Deriya
PublisherSonabai Jain Ganjbasauda
Publication Year1999
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size1 MB
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