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भजन - १३३
तर्ज हे वीर तुम्हारे द्वारे पर इक दरस....
शाश्वत सुख के वासी नर, शाश्वत सुख को ही पाओगे । शाश्वत सुख तेरा घर आंगन, शाश्वत ही अब हो जाओगे ॥
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अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
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सम्यक् रूपी जल जिसमें भरा, हम तीर्थ उसी को कहते हैं। उसमें ही नित अवगाहन कर, हम सुख शान्ति से रहते हैं ॥ ज्ञान सरिता से अब नेह लगा, अब सर्वश्रेष्ठ हो जाओगे....
आतम अनुपम गुण का सागर, वह सिद्ध भगवंतों जैसा है। न बंधा हुआ न मुक्त हुआ, वह तो जैसे का तैसा है । लख वीतराग मय आतम को, अब वीतराग हो जाओगे.....
यह वीतरागता धर्म महा, शाश्वत सुख को देने वाला । लख ज्ञान सरोवर सरिता को, अमृत मय निर्झर झर वाला ॥ ध्रुव शुद्धातम का आश्रय ले अतीन्द्रिय पद को पाओगे.....
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अव्यय अक्षय पद का धारी, यह आतम ही परमातम है। अनन्तानन्त गुण का धारी, सर्वज्ञ प्रभु यह आतम है । है अनन्त निधि का संग्रहालय, परिपूर्ण अमरता पाओगे......
आतम मेरी अति सुन्दर है, वह श्रेष्ठ गुणों का धारी है । रत्नत्रय के गहने पहने, समता की अंगूठी धारी है ॥ सत्ता इक शून्य विंद में समा, ध्रुव सत्ता है पर बैठोगे.....
★ मुक्तक ★
आतम है शुद्ध बुद्ध ज्ञान की इक ज्योति है।
अष्ट कर्म विषय कषाय और मलों को धोती है ॥ जब दृष्टि अन्तर में जगे योग्यता का ज्ञान होता है। निर्विकल्प दशा रहे तो अतीन्द्रिय सुख का भान होता है ।
आत्मा मेरी गम्भीर अनन्त शक्ति का निधान है। चैतन्य की प्रतिमा वीतरागी गुणों की खान है ॥ शांत मुद्रा आत्मा की वर्तमान में ही पूर्ण है । त्रिकाली के लक्ष्य से स्वयं में परिपूर्ण है
अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
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भजन- १३४
तर्ज- तुम अगर साथ देने..... आत्मा आत्मा में रहेगी सदा, ज्ञान गुण को निहारे त्रिकाली सदा । नित्य ध्रुव में रहे, ध्रुव में रमण करे, कमल ममल स्वभावी है सुख से वह लदा ॥
ज्ञान ज्योति हमारी है सुख से भरी, अनन्तानन्त गुणों की ये धारी सदा । निज आतम हमारी है रत्नत्रयी, ज्ञान ही ज्ञान से है विभूषित सदा ॥ ज्ञान में ही रहे मेरी नित साधना, ज्ञान में ही रहे मेरी आराधना...
२. ज्ञान का मार्ग पाया मेरी आत्म ने, ध्रुव से लगन लगाये रहेगी सदा । ज्ञान गुण को संजोया है शुद्धात्म ने, यह तो आतम में रमण करेगा सदा ॥ नन्द आनन्दमयी चिदानन्द है यही, यही सर्वज्ञ स्वभावी है परमात्मा...
३. स्वानुभूति की रसिया मेरी आत्मा, निज में निज से ही निज को पाये सदा । सर्व रिद्धियों का पात्र है मम आत्मा, अक्षय सुख का भंडार रहेगा सदा ॥ ममल मेरा स्वभाव है अमृत मयी, स्वानुभूति में हरदम समा जायेगा...
★ मुक्तक ★
तत्व निर्णय स्व पर भेद विज्ञान की कहानी है। वस्तु स्वरूप विचार के यह बात चित में लानी है । आत्मा शुद्धात्मा परमात्मा है यह हमने जानी है। रत्नत्रय की डोर से अब हमको मुक्ति पानी है ॥
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