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________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला भजन- १०४ तर्ज- मन की तरंग मार लो.... काया की सुधि बिसार दो, यह आखिरी जनम । परिणाम निज सम्हार लो, यह आखिरी जनम ।। १. क्या लाया था ले जायेगा, इसका तू ज्ञान कर । धन सम्पदा तेरी नहीं, अपना तू ध्यान कर ॥ आतम के गुण निहार लो, यह आखिरी जनम...काया की सुधि... २. शंकादि अष्ट दोष हैं, इनका तू त्याग कर । मूढताएं शल्य छोड़ दे, आतम को जान कर ॥ भेदज्ञान उर में धार लो, यह आखिरी जनम...काया की सुधि... ३. शुद्धात्मा तेरा सदा, आनन्द कन्द है । ज्ञायक है त्रिकाली सदा, धुव चिदानन्द है ॥ अपनी सुरत सम्हार लो, यह आखिरी जनम...काया की सुधि... चेतन स्वभाव शुद्ध है, और निर्विकार है। निज आत्मा मेरे लिये, मुक्ति का द्वार है॥ वीतरागता को धार लो, यह आखिरी जनम...काया की सुधि... भजन - १०६ तर्ज - बाबुल का ये घर बहना... जिनमती माता का, हुआ दर्श ये सुहाना है। वैराग्य धार लिया, पहना समकित का बाना है । १. अपनी आतम का, माता ध्यान जब करती हैं। स्वात्म मगन होकर, शिव रमणी को वरती हैं । मां ज्ञान स्वभावी हो, ममल भाव को पाना है । जिनमती माता का... २. मां आपके प्रवचन से, हुआ आनन्द भारी है। संयम तप को साधो, मां वयन उचारी हैं । माँ समता की मूरति हो, अनुपम पद को पाना है। जिनमती माता का... ३. ज्ञान ध्यान तप में, मां लीन जो होती हैं । निजात्म मगन होकर, कर्मों को धोती हैं । शास्त्रों के अध्ययन से, पाया ज्ञान का खजाना है। जिनमती माता का... * मुक्तक भजन - १०५ तर्ज-दीवाना मैं तेरा.... खजाना गुणों का खजाना, सम्यक् श्रद्धा को जगाना। आत्मा को जान के,धर्मपहिचान के,ज्ञानज्योति जगा॥ आत्मा है मेरी, ज्ञान गुण की चेरी, ध्यान से लौ लगा। शील के रंग में, रंग दे चुनरिया...शान्ति उर में ला... हम आये निसई क्षेत्र, आज हम तारण के, चरणों में आये हम। वन्दन को करके, अर्चन को करके, श्रद्धा के सुमन चढ़ा... खजाना गुणों का... २. ममल ये आतम, ध्रुव सहजातम, सिद्धात्मा। आतम शुद्धातम, बनी परमातम, आनन्दात्मा ॥ जन्म-जन्म के दु:खों को मेटो तुम। आत्म ज्ञान से कर्मों को तोड़ें हम ॥ धर्म को धार के, ज्ञान के प्रकाश से, आत्म की ज्योति जगा...खजाना... ज्ञान का ही पुंज है ज्ञान की ही ज्योति है। कैसे कुछ कहें हम आनन्द की वृद्धि होती है। ऐसे आत्म सिन्धु में गोते लगायेंगे हम । ध्रुव में ही वास करें ध्रुव को ही पायेंगे हम ॥ जब छान के पानी पीता है, रात्रि भोजन नहीं करता है। वो प्रतिदिन मन्दिर जाता है, अभक्ष्य का त्याग करता है। संसार के सब सुख और दुःख उसके दूर हो जाते हैं। वह संयम तप का पालन कर आतम से नेह लगाते हैं।
SR No.009712
Book TitleAdhyatma Chandra Bhajanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakanta Deriya
PublisherSonabai Jain Ganjbasauda
Publication Year1999
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size1 MB
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