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________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला भजन - १०१ आतम को पाना होगा, आतम में अब समाओ। अतीन्द्रिय आनन्द की महिमा, को अब तुम गाओ॥ १. अंतर स्वरूप आतम, अनंत शक्तिधारी। चैतन्य की है प्रतिमा, मम आत्मा त्रिकाली...आतम को... २. चाहे जगत अनकूला, चाहे जगत प्रतिकूला। निष्क्रिय चैतन्य द्रव्य हूँ, आनन्द रस में झूला...आतम को... ३. वीतरागी शांत मुद्रा को, ज्ञानियों ने धारी। निर्भय निशंक तू है, अनंत सुख का धारी...आतम को... ४. विकल्प जिस क्षण जाये, मम आत्मा सुहाये। परिणति निज में जाये, निज अनुभूति पाये...आतम को... भजन- १०२ तर्ज-पों के पर्व पर्युषण... आतम का सुख आतम में है, बतलाया गुरूवर तारण ने। आराधक भव भव पार होय,बतलाया गुरूवर तारण ने॥ १. कोई राग करे कोई द्वेष करे, कोई क्रोध करे कोई मान करे । कर्मों के बंधन में बंधते, बतलाया गुरूवर तारण ने || आतम का... २. निर्मल अनुपम आतम मेरी. है ज्ञान दर्शन गण की चेरी। आतम का हम सुमरण कर लें, बतलाया गुरूवर तारण ने ॥ ___आतम का... ३. पंचेन्द्रिय के विषयों का त्याग करें,माया मिथ्या शल्य को दूर करें। तत्वों की श्रद्धा हिय में धर लें, बतलाया गुरूवर तारण ने ॥ आतम का... ४. यह ज्ञान वैराग्य की धारी है, है विमल निर्मल सुखकारी है। ममल आतम पै अब दृष्टि धर लें, बतलाया गुरूवर तारण ने ॥ आतम का... भजन- १०३ तर्ज-गुरू बाबा को जिसने ध्याया... भेद ज्ञान को जिसने पाया, आतम का उद्धार हुआ। तत्व निर्णय के द्वारा भैया, उसका बेड़ा पार हुआ। अपने आतम से प्रीति करो.शद्धातम की भक्ति करो, जय हो प्यारी आत्मन्, जय हो प्यारी आत्मन्... १. अक्षय सुख का खजाना है मेरा चेतन। ज्ञाता दृष्टा अमूरति है मेरा चेतन ॥ राग को तज दिया, धर्म को धारण किया, निर्मोही है संसार से.... विषय भोग को जिसने त्यागा, उसका जय जय कार हुआ। तत्व निर्णय के द्वारा भैया... २. मेरा आतम स्वभाव है मस्ती भरा। समकित रूपी जल से लबालब भरा ॥ आत्म से नेह लगा, कर्म को मार भगा, ध्यान धरना है निज आत्म का... स्वानुभूति को जिसने पाया, उसका ही उद्वार हुआ। तत्व निर्णय के द्वारा भैया... ३. ध्रुव अलख निरंजन है आतम मेरी। रत्नत्रय से विभूषित है सुख की ढेरी ॥ श्रद्धा के सुमन चढ़ा, ध्यान से लौ लगा, यारी की है निर्वाण से... परमातम को जिसने पाया, जग से बेड़ा पार हुआ। तत्व निर्णय के द्वारा भैया... साधक ध्यान का अभ्यास करने से दैनिक जीवनचर्या में मोह से विमुक्त हो जाता है और ज्यों-ज्यों वह मोह से विमुक्त होता है त्यों-त्यों उसे ध्यान में सफलता मिलती है।
SR No.009712
Book TitleAdhyatma Chandra Bhajanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakanta Deriya
PublisherSonabai Jain Ganjbasauda
Publication Year1999
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size1 MB
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