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भजन-११ हे भवियन ध्याओ आतमराम। कौन जानता कब हो जाए, इस जीवन की शाम ॥ १. जग में अपना कुछ भी नहीं है, परिजन तन या दाम। आयु अंत पर सब छूटेगा, जल जायेगी चाम ।।
हे भवियन.... २. यह संसार दुखों की अटवी, यहां नहीं आराम । शुद्धातम की करो साधना, रहो सदा निष्काम ॥
हे भवियन.... ३. मोह राग को छोड़ के चेतन, निज में करो विश्राम । शुद्ध-बुद्ध अविनाशी हो तुम, शुद्धातम सुख धाम ॥
हे भवियन.... ४. सिद्ध स्वरूपी ममल स्वभावी, आनंदमयी ध्रुव धाम। ब्रह्मानंद में लीन रहो नित, जग से मिले विराम ॥
हे भवियन...भजन-१२
मन की ऐसे प्यास बुझै। जड़ चेतन का भेद पिछाने, सत्स्वरूप समुझै ॥ १.तन में आपा बुद्धि तजकर, ध्रुवस्वभाव बूझै।
विषय कषाय विकार भाव में, बिल्कुल न उरझै....मन की... २.इच्छा तृष्णा गहरी खाई, मन से न पूजै।
ज्ञान डोरि से बांधो मन को, सत्य तभी सूझै ... मन की... ३.भेदज्ञान तत्व निर्णय द्वारा,द्रव्य दृष्टि उपजै।
वस्तु स्वरूप को नीर क्षीरवत्,ज्यों का त्यों समुझे..मन की... ४.पर पर्याय नाशवान हैं, उनसे न जूझै ।
अंतर ब्रह्मानंद मगन हो, माया से सुरझै ........मन की ...
9 भजन - १३ जय तारण तरण सदा सबसे ही बोलिये ।। जय तारण तरण बोल अपना मौन खोलिये ॥ १. श्री जिनेन्द्र वीतराग, जग के सिरताज हैं।
आप तिरें पर तारें, सद्गुरू जहाज हैं।
धर्म स्वयं का स्वभाव, अपने में डोलिये.... २. निज शुद्धातम स्वरूप,जग तारण हार है।
यही समयसार शुद्ध, चेतन अविकार है।
जाग जाओचेतन, अनादि काल सो लिये... ३. देव हैं तारण तरण, गुरू भी तारण तरण।
धर्म है तारण तरण, निजात्मा तारण तरण॥
भेदज्ञान करके अब, हृदय के द्वार खोलिये... ४. इसकी महिमा अपार, गणधर ने गाई है।
गुरू तारण तरण ने, कथी कही दरसाई है। ब्रह्मानंद अनुभव से, अपने में तौलिये.....
भजन-१४ आतम है- आतम है, निज आतम देव परमातम है। १. अलख निरंजन शिवपुर वासी ।
ध्रुव तत्व है ममल स्वभावी...आतम है... २. एक अखण्ड सदा अविनाशी ।
चेतन अमल सहज सुख राशि...आतम है... ३. ज्ञानानंद स्वभावी आतम ।
परम ब्रह्म है निज शुद्धातम ...आतम है... ४. ध्रुव धाम में रहने वाला ।
अहं ब्रह्मास्मि कहने वाला ...आतम है... ५. सच्चिदानंद घन अरस अरूपी । केवलज्ञानी सिद्ध स्वरूपी ...आतम है...
* इति *
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