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भजन-८ काये देखो रे शरीर,काये देखो रे शरीर।
तन तो है धूरा को ढेर, नश जैहै वीर ॥ १. राजा महाराजा चक्री भी, जग में न रह पाये। जिसका जन्म हुआ है, उसका अंत एक दिन आये। जोगी राजा रंक फकीर, जोगी राजा रंक फकीर,
तन तो है धूरा... २. चक्री सनत्कुमार सरीखे, तन को बचा न पाये।
कोढ़ हुआ तब नाशवान लख, आतम ध्यान लगाये ॥ अब तो मन में धर लो धीर, अब तो मन में धरलो धीर,
तनतो है धूरा.... ३. नव द्वारों का है यह पिंजरा, चेतन इसमें रहता ।
उड़ जाये तो क्या अचरज है, अचरज कैसे रहता ॥ भैया बात बड़ी गंभीर, भैया बात बड़ी गंभीर,
तन तो है धूरा.... ४. महा अपावन सप्त धातुमय, जाल नसों का फैला।
चेतन राजा क्यों ढो रहे हो, यह घूरे का थैला ॥ सह रहे काये मुफत में पीर,सह रहे काये मुफत में पीर,
तनतो है धूरा ..... ५. कैसे खिलें बसंत बहारें, लग रहे हो तुम पर में ।
कलरंजन का बंधन तोड़ो, चलो चलें निज घर में ॥ पा लो भव सागर का तीर, पालो भव सागर का तीर,
__ तन तो है धूरा....
भजन-९ दिन रैन रखो निज ध्यान, चिदानंद तुम चिन्मय भगवान | १. जग में अपना कोई नहीं है, क्यों हो रहे हैरान । मोह राग अरू चाह कामना, यह सब दुःख की खान॥
चिदानंद तुम.... २. तू है चेतन सबसे न्यारा, स्व संवेद्य प्रमाण । परमानंद विलासी ज्ञायक, स्वयं है सिद्ध समान ॥
चिदानंद तुम.... ३. दुख का कारण एक यही है, भूले ज्ञान-विज्ञान । इस शरीर से तुम हो न्यारे, कर लो निज पहिचान।
चिदानंद तुम.... ४. एक अखंड निरंजन निर्मल, तुम हो ममल महान । ब्रह्मानंद में लीन रहो नित, हो जाये कल्याण ॥
चिदानंद तुम.... भजन-१०
मन की कैसे प्यास बुझे। पर द्रव्यों का अपना माने, माया में उरझै ॥ १. जीव ब्रह्म का भेद न जाने, विषय मार्ग सूझै ।
धन संग्रह की ममता करके, अपना हित समुझे...मन की... २. तन में आपा बुद्धि राखै, पापों में जूझै ।
विषयों का खारा जल पीकर, अमृत रस समुझे...मन की... ३. इच्छा तृष्णा की खाई में, जग तृणवत् बूझै।
अंतर ब्रह्मानंद सिंधु का, अनुभव न उमझे...मन की... ४. सत्य असत्यनसमझेपल भर,क्या समझाऊंतुझे।
मोह कामना राग भाव से, जब तक न सुरझै...मन की...
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