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प्रकाशकीय
आध्यात्मिक क्रांति के जनक आचार्य प्रवर श्री मद् जिन । तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज जन-जन में अध्यात्म चेतना के प्राण फूंकने वाले महान वीतरागी संत थे। निष्पक्ष भाव से सत्य धर्म का स्वरूप बताने वाले, अध्यात्म की अलख जगाने वाले ऐसे निस्पृह संत विरले ही होते हैं, उनके द्वारा सृजित चौदह ग्रंथ युगों-युगों तक जग जीवों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। पूज्य गुरूदेव की वाणी में संसार के मानव मात्र के लिए आत्म कल्याण करने, मुक्ति को प्राप्त करने का मंगल मय संदेश है।।
पूज्य गुरूदेव की वाणी को जन-जन में प्रचार करने हेतु गुरूदेव के प्रति समर्पित साधक श्री संघ, आत्म निष्ठ साधक पूज्य श्री स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज के मार्गदर्शन में अपनी आत्म साधना के मार्ग पर चलते हुए विभिन्न आयामों के माध्यम से सद्गुरू की वाणी को संपूर्ण देश में प्रचार-प्रसार करने में संलग्न हैं। साधक श्री संघ द्वारा निस्पृह वृत्ति पूर्वक अखिल भारतीय तारण समाज एवं देश भर में किये जा रहे अध्यात्म धर्म प्रभावना कार्यों की एक झलक इस प्रकार है
१. सन् १९८० से ८४ के बीच साधकों द्वारा समाज के विभिन्न अंचलों में अनेक समूहोंने भ्रमण कर सामाजिक जागरण और धर्म प्रभावना का बीजारोपण किया।
२. सन् १९८४ में बरेली (म.प्र.) में आयोजित श्री मालारोहण शिविर में दिनांक ७ फरवरी ८४ बसंत पंचमी को पू. श्री की दीक्षा हुई तथा अनेक भव्यात्माओं ने ब्रह्मचर्य व्रत लेकर प्रभावना में सहयोग करने का संकल्प किया। इसी वर्ष पू. ब्र. श्री सुशीला बहिन जी की भी दीक्षा हुई।
३. सन् १९८५ में पूज्य ब्र. श्री बसंत जी महाराज एवं पू. ब. श्री सहजानंद जी महाराज (बाबाजी) ने जन जागरण अभियान के अंतर्गत समाज के प्रत्येक नगर और गांव-गांव जाकर सामाजिक जागरण और धर्म प्रभावना की, इससे अनेक उपलब्धियां हुईं। इसी वर्ष पिपरिया में ब्रह्मानंद आश्रम की स्थापना हुई।
४.वर्ष १९८६ में भ्रमण के साथ ही श्री निसईजीतीर्थ क्षेत्र पर चौदह ग्रंथों का अत्यंत दुर्लभमूल पाठ संपादन कार्य सम्पादित किया गया। इस कार्य हेतु व्र. श्री बसंत जी द्वारा महाराष्ट्र से विक्रम संवत् १५८५से १६०० तक की लगभग २० हस्तलिखित, चौदह ग्रंथों की प्रतियां फैजपुर महाराष्ट्र से लाई गई थीं, पश्चात् संवत् १५७२ की ममल पाहुड और तीन बत्तीसीकीदुर्लभ प्रति भी प्राप्त हुई थी,जो प्रतियां श्री निसई जी में ही सुरक्षित हैं।
५. वर्ष १९८७ में श्री सेमरखेड़ीजी में दिनांक ३ फरवरी ८७ बसंत पंचमी पर ब. बसन्त जी की दीक्षा हुई और सन् ८८ में भ्रमण तथा १९८९ में राष्ट्रीय स्तर पर तारण तरण अध्यात्म ध्वज प्रवर्तन का संपूर्ण समाज में भ्रमण और गांव-गांव, नगरनगर में पालकी जी महोत्सव, सामाजिक संगठन, प्रभावना आदि अनेक शुभ कार्य संपन्न हुए। सन् १९९० में भी भ्रमण द्वारा गुरूवाणी प्रचार चलता रहा।
६.सन् १९९१ से ९६तकपू.ब. श्रीबसंतजीमहाराजने संपूर्ण देश में भ्रमण कर भारत वर्ष में दिगंबर-श्वेताम्बर,जैन
अजैन सभी वर्गों में गुरू तारण वाणी का शंखनाद किया, जिससे 1 संपूर्ण भारत में तारण समाज की पहिचान बनी।