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जयमाल]
[अध्यात्म अमृत सम्यक् दर्शन ज्ञान का होना, जग से तारणहार है। जन्म-मरण के चक्र से छूटो, यही प्रवचन सार है |
१८. श्री पंचास्तिकाय
जयमाल
७.
अज्ञानी कर्मों से बंधता, ज्ञानी कमल समान है । त्रिविध योग की साधना करके, बनता खुद भगवान है । दृष्टि पलटते मुक्ति होवे, मिटता सब संसार है । जन्म-मरण के चक्र से छूटो, यही प्रवचन सार है।
१. जीव तत्व पदार्थ द्रव्य से, अस्तिकाय कहलाता है।
छह द्रव्यों का समूह जग, जैनागम बतलाता है ।। जीव स्वभाव से सिद्ध स्वरूपी, पुद्गल सब जड़ धूल है। शुद्ध प्रदेश बताने वाला, पंचास्तिकाय का मूल है ।
पर पर्याय शरीरादि का, लक्ष्य महा अज्ञान है । सर्वागम का ज्ञाता हो पर, पाता न निर्वाण है ॥ सम्यक् दर्शन ज्ञान चरण से, आतम का उद्धार है। जन्म-मरण के चक्र से छूटो, यही प्रवचन सार है ।।
गुण पर्ययवत् सभी द्रव्य हैं, सत अस्तित्व कहाते हैं। व्यय उत्पाद धौव्य के कारण, सबमें आते-जाते हैं । पर्यायी निमित्त नैमित्तिक संबंध, यही जगत का मूल है। शुद्ध प्रदेश बताने वाला, पंचास्तिकाय का मूल है ।
३.
जो मुमुक्षु चारित्र को धारे, शुद्धोपयोग में लीन हो। अंतर में रत्नत्रय प्रगटे, बाह्य चरित्र दशतीन हो । साधु हो यदि शुभ उपयोग में, व्यर्थ उठाता भार है। जन्म-मरण के चक्र से छूटो, यही प्रवचन सार है ॥
पांच द्रव्य हैं बहुप्रदेशी, काल द्रव्य है कालाणु । जीव अनन्त असंख्य प्रदेशी, पुद्गल अनंत हैं परमाणु ॥ दोनों के अशुद्ध परिणमन से, बना जगत यह शूल है। शुद्ध प्रदेश बताने वाला, पंचास्तिकाय का मूल है ।
१०. सम्यग्दर्शन ज्ञान सहित जो, साधु पद स्वीकार करे ।
कुन्द कुन्द आचार्य बखाने, वह ही मुक्ति श्री वरे ।। ज्ञानानंद स्वभाव ही अपना, एक मात्र आधार है । जन्म-मरण के चक्र से छूटो, यही प्रवचन सार है ॥
४. धर्म एक अधर्म एक, आकाश एक सर्व व्यापी है ।
गुण पर्याय से शुद्ध हैं तीनों, मात्र निमित्त सहकारी हैं । काल द्रव्य परिणमन सहकारी, सब अपने अनुकूल हैं। शुद्ध प्रदेश बताने वाला, पंचास्तिकाय का मूल है ।
(दोहा)
जीव पुद्गल गुण द्रव्य से शुद्ध है, मात्र अशुद्ध पर्याय है। अपने-अपने में परिणमन करते, अज्ञानी भरमाय है ॥ जीव अरूपी चेतन लक्षण, जैसे कमल का फूल है। शुद्ध प्रदेश बताने वाला, पंचास्तिकाय का मूल है ।।
ज्ञानानंद स्वभाव का, जिनका लक्ष्य महान । निज स्वभाव में लीन हो, बन गये वे भगवान ।। निज आतम कल्याण का, जिनका होवे लक्ष्य । सम्यक् ज्ञान प्रगट करे, छोड़े सब ही पक्ष ।
काल अनादि छहों मिले हैं, चलता चक्र ये सारा है। शुद्ध प्रदेशी सभी द्रव्य हैं, सब अस्तित्व न्यारा है ॥