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[अध्यात्म अमृत
जयमाल
निज सत्ता स्वरूप को भूला, जीव बना त्रिशूल है। शुद्ध प्रदेश बताने वाला, पंचास्तिकाय का मूल है ॥
१९. श्री अष्टपाहुड़
जयमाल
७. ज्ञायक ज्ञान स्वभावी चेतन, चिदानंद भगवान है ।
ध्रुव तत्व टंकोत्कीर्ण अप्पा, केवल ज्ञान प्रमाण है । निज स्वरूप का बोध जागना, सम्यक्दर्शन मूल है। शुद्ध प्रदेश बताने वाला, पंचास्तिकाय का मूल है ।
१. चिदानंद ध्रुव शुद्ध आत्मा, चेतन सत्ता है भगवान ।
टंकोत्कीर्ण अप्पा ममल स्वभावी,ब्रह्म स्वरूपी सिद्ध समान ॥ निज शुद्धात्मानुभूति युत जिसको, हुआ यह सम्यक्ज्ञान है। अष्ट पाहुड को जानने वाला, पाता पद निर्वाण है ॥
८. चार गति चौरासी लाख योनि का, चक्र बना संसार है।
नव पदार्थ के रूप में चेतन, करता हा हाकार है ।। निश्चय व व्यवहार समन्वय, जग तरने का कूल है। शुद्ध प्रदेश बताने वाला, पंचास्तिकाय का मूल है ।
दर्शन पाहुड सूत्र पाहुड, चारित्र पाहुड़ का ज्ञान है। बोध पाहुड भाव पाहुड, मोक्ष पाहुड महान है ॥ लिंग पाहुड शील पाहुड़ का, जिसको सत्श्रद्धान है। अष्ट पाहुड को जानने वाला, पाता पद निर्वाण है ॥
व्यवहाराभासी निश्चयाभासी, सूक्ष्म संधियां होती हैं। सम्यज्ञान प्रगट होने पर, मोह तिमिर को खोती है । निज शुद्धात्मानुभूति से, मिटता सब प्रतिकूल है । शुद्ध प्रदेश बताने वाला, पंचास्तिकाय का मूल है ॥
३. सम्यक् दर्शन प्रथम सीढ़ी है, मोक्षमार्ग को पाने की।
सम्यक् ज्ञान ही कला सिखाता, वीतराग बन जाने की ॥ बिन समकित के क्रिया कांड सब, मिथ्या भ्रम अज्ञान है । अष्टपाहुड को जानने वाला, पाता पद निर्वाण है ।।
१०. शुद्ध प्रदेश अनादि निधन है, जिसका लक्ष्य महान है।
कुन्दकुन्द आचार्य कथन है, वह बनता भगवान है । ज्ञानानंद स्वभाव साधना, करती जग को धूल है । शुद्ध प्रदेश बताने वाला, पंचास्तिकाय का मूल है ।
४. शास्त्र सूत्र सिद्धांत का ज्ञाता, जिन आगम का ज्ञाता है।
जिनवर कथित सप्त तत्वों का, वही सही व्याख्याता है। कथनी करनी जिसकी एक सी, वह बनता भगवान है। अष्ट पाहुड को जानने वाला, पाता पद निर्वाण है ।
(दोहा) कुन्द कुन्द आचार्य ने, जिनवर के अनुकूल | अस्तिकाय पदार्थ का, बता दिया सब मूल || जो चाहो निज आत्म हित, करो स्व-पर का ज्ञान । निज स्वभाव में लीन हो, बन जाओ भगवान ।।
सम्यक् चारित्र मुक्ति देता, परमानंद का दाता है। वीतराग शुद्धोपयोग ही, साधु पद को पाता है । धर्म के नाम पर ढोंग रचाना, जीवन पशु समान है। अष्ट पाहुड को जानने वाला, पाता पद निर्वाण है ॥
बोध भेद विज्ञान से होता, के वलज्ञान प्रगटाता है । वस्तु स्वरूप सामने दिखता, फिर न धोखा खाता है ।