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प्रथमोन्मेषः झादकारिणि । तदिति काव्यपरामर्शः तद्विदन्तीति तद्विदस्तक्षा स्तेषामाहादमानन्दं करोति यस्तस्मिन् तद्विदाहादकारिणि बन्धे व्यवस्थितौ। वक्रतां वक्रताप्रकारांस्तद्विदाहादकारित्वं च प्रत्येक यथावसरमेवोदाहरिष्यन्ते।
अवसरप्राप्त (बात ) तो ( यह है कि ) किस प्रकार के पन्ध में ( व्यवस्थित, सहभाव से युक्त शब्द और अर्थ काव्य होते हैं ?) वऋकविव्यापार से शोभित होने वाले। वक्र अर्थान् जो यह शस्त्रादि में प्रसिद्ध शब्द और अर्थ के उपनिबन्धन से व्यतिरिक्त, (वक्ष्यमाण) छः प्रकार की वक्रताओं से विशिष्ट, कवि का व्यापार अर्थात् उसकी क्रियाओं का (काव्य-रचना का) क्रम है, उससे जो शोभित अर्थात् प्रशंसित होता है, उस ( बन्ध ) में ( व्यवस्थित शब्द और अर्थ काव्य होते हैं । ) तो इस प्रकार (लमण करने पर ) भी कठिन कल्पना से उपहत (बन्ध ) में भी ( शास्त्रादि में ) प्रसिद्ध ( शब्दार्थोपनिबन्ध ) से व्यतिरिक्तता आ जायगी ( अर्थात् कठिन कल्पना से युक्त भी बन्ध में व्यवस्थित शब्द और अर्थ काव्य होने लगेंगे ) बतः (ऐसे बन्धकाव्य न हो इसके निवारणार्थ ) कहा है कि तद्विदों के लिए माह्लादजनक (बन्ध में व्यवस्थित । तत् शब्द से काव्य का परामश होता है। अर्थात् उस ( काव्य ) को जानते हैं जो वे हुए तदिद् ( यदि ( काव्यज्ञ ) उनका जो आह्लाद अर्थात् आनन्द करता है वह हुमा तविदाह्लादकारी ( अर्थात् काव्यज्ञों के आह्लाद का जनक ) उस बन्ध में व्यवस्थित ( शब्द और अर्थ काव्य होते है )। वक्रता, वक्रता के प्रकारों तथा काव्यज्ञों की आह्लादकारिता, प्रत्येक को यथावसर ही उदाहृत किया
जायगा।
___ एवं काव्यस्य सामान्यलक्षणे विहिते विशेषलक्षणमुपक्रमते । तत्र शब्दार्थयोस्तावत्स्वरूपं निरूपयति
वाच्योऽर्थों वाचकः शब्दः प्रसिद्धमिति यद्यपि । तथापि काव्यमार्गऽस्मिन् परमार्थोऽयमेतयोः॥८॥
इस प्रकार काव्य का सामान्य लक्षण कर देने के अनन्तर विशेष लक्षण प्रारम्भ करते हैं। उसमें तब तक शब्द और अर्थ के स्वरूप का निरूपण करते हैं
यद्यपि वाच्य अर्थ ( होता है तथा ) वाचक शब्द ( होता है ) वह