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सम्बन्ध के विषय में मौलिक चिन्तन प्रस्तुत किया है। हमने यह सिद्ध कर दिया है कि कुन्तक अभिनव से पूर्ववर्ती थे।
इस पुस्तक के रूपान्तर करने में हमें हमारे पूज्य गुरुवर डा. सिंह जी से बहुत सहायता मिली है । इसके लिये उनके प्रति आभार प्रकट करना शन्दों द्वारा सम्भव नहीं । यह जो कुछ हमने किया सब उन्हीं की कृपा का प्रसाद है। हमारा रूपान्तर पूर्णतः निरवद्य है, यह कहना तो बिल्कुल असत्य को सामने लाना होगा क्योंकि यह हमारा पहला प्रयास है और वह भी 'वक्रोकि-जीवित' जैसे शास्त्रीय ग्रंथ का रूपान्तर करने का। हमारी समझ में सभी स्थल पूर्ण रूप से सही ढंग से भा हो गए हैं यह कह सकना कठिन है। फिर भी जहाँ तक हम इसे समझ सके हैं विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है कि विद्वज्जन अशुद्धियों के लिए क्षमा करेंगे। यदि इससे संस्कृत साहित्य का अध्ययन करने चालों को कुछ भी लाभ हो सकेगा तो हम अपना प्रयास सफल समझेंगे और यदि अवसर मिला तो दूसरे संस्करण में इसमें हम यथासम्भव संशोधन और इसकी विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत करेंगे।
विनीत
स्थान ४०२ मालवीय नगर ।
इलाहाबाद
राधेश्याम मिश्र