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________________ ( ६६ ) "An excellent edition of the four Unmeşas of the Vakroktijivita, with a modern Hindi commentary by Acarya Visweśvara and exhaustive Introduction in Hindi has been published recently by Dr. Nagendra of the Delhi University. There are, however many misprints and it is not clear on which mss or editions the text is based.” (H. S. P. fo. I. P. 215-6). महामहोपाध्याय जी का यह कथन पूर्णतः सत्य है। हमें तो प्रन्थ के कतिपय अंशों को देखकर यही समझ में आता है कि प्राचार्य जी के संस्करण का । आधार डा. डे का संस्करण ही है।। अस्तु, आचार्य जी के संस्करण का सूक्ष्म दृष्टि से अवलोकन करते समय पाठभेदों तथा व्याख्या में अनेक विसंगतियाँ देखकर चित्त बहुत भिन्न हो गया। अपने परमश्रद्धेय गुरुवर डा• लालरमायदुपाल सिंह जी, एम० ए०, एल० एल० बी, डी. फिल०, साहित्याचार्य, साहित्यरत्न, प्रवक्ता संस्कृतविभाग, प्रयाग विश्वविद्यालय से अपने चित्त की उलझन निवेदित की तो उन्होंने आदेश दिया- . "तुम स्वयं इस प्रन्थ का रूपान्तर हिन्दी में कर डालो। इससे ग्रंथ भी तुम्हारी समझ में आ जायगा और उसे जब प्रकाशित करवा दोगे तो वह हिन्दी के सहारे संस्कृत के विषय को समझने वाले लोगों को वक्रोक्तिजीवित के सही विषय का ज्ञान प्राप्त कराने में पर्याप्त सहायक सिद्ध होगा।" गुरु जी के आदेशानुसार हमने इसका हिन्दी रूपान्तर किया । हमारे रूपान्तर का आधार. पूर्ण रूप से ग डे का संस्करण है। हमने जहाँ कहीं भी उसमें परिवर्तन किया है वह ० के द्वारा उद्धृत पादटिप्पणियों के माधार पर ही। .. इसके लिए हम डा• साहब के हृदय से आभारी हैं। यद्यपि डा. साहब का संस्करण बहुत ही विद्वत्तापूर्ण ढंग से सम्पादित किया गया है, फिर भी यत्र तत्र कुछ पाण्डुलिपि के अंश डा. साहब के ध्यान में संगत न लगे होंगे जिनके स्वान पर उन्होंने अपनी बोर से पाठ दे दिया है। उनमें से जो अंश हमें यहाँ सात प्रतीत हुए उनका हमने पाठ मूल पाण्डुलिपि के आधार पर परिवर्तित कर दिया है। .. से हमारी योजना इस प्रन्य के पूर्णरूप में प्रकाशित करने की है। यदि भगवत्कृपा रही तो हमें भाशा है कि हम इस कार्य को करने में सफल होंगे। प्रस्तुत प्रन्थ का रूपान्तर हमने डा. डे द्वारा दिये गये मूल एवं एवं उनके तृतीय तथा चतुर्थ सम्मेष की Resume में किए गए निर्देशों के आधार पर किया है। भूमिका में हमने भाचार्य कृन्तक के काल के विषय में तथा उनके शेगादत के
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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