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( ६२ ) सत्काव्याधिगमादेव नूतनौचित्यमाप्यते ॥ में प्रयुक्त परिस्पन्द की व्याख्या करते हैं-'व्यवहारो लोकवृत्तम्, तस्य परिस्पन्दो व्यापारः क्रियाक्रमलक्षणस्तस्य सौन्दर्यमित्यादि ।
(२) तथा शाब्द और प्रतीयमान दो प्रकार के व्यतिरेकालङ्कार के निरूपण के अनन्तर तीसरे प्रकार के व्यतिरेक का निरूपण करते हुए ( ३३६ )।
'लोकप्रसिद्धसामान्यपरिस्पन्दाद् विशेषतः ।'
व्यतिरेको यदेकस्य स परस्तद्विवक्षया ॥ में आये परिस्पन्द् का व्यख्यान करते हैं-'लोकप्रसिद्धो जगत्प्रतीतः सामान्यभूतः सर्वसाधारणो यः परिस्पन्दः व्यापारः तस्मादिति । ___ इन उद्धरणों से स्पष्ट है कि यहाँ पर उन्होंने परिस्पन्द का व्यापार के पर्याय रूप में प्रयोग किया है।
(घ) स्पन्द का विलसित के पर्याय-रूप में प्रयोग (१) ग्रन्थ के प्रारम्भ में ही अभिमत देवता के प्रति नमस्कारात्मक (111)
'वन्दे कवीन्द्रवक्त्रेन्दुलास्यमन्दिरनर्तकीम् ।
देवीं सूक्तिपरिस्पन्दसुन्दराभिनयोज्ज्वलाम् ॥ में आये सूक्तिपरिस्पन्द की व्याख्या करते हैं-'सूक्तिपरिस्पन्दाः सुभाषितविलसितानि'। (२) तदनन्तर प्रत्ययवक्रता के दूसरे भेद का निरूपण करते हुए ( २०१८) __'भागमादि परिस्पन्दसुन्दरः शब्दवकताम्'।
परः कामपि पुष्णाति बन्धच्छायाविधायिनीम् ॥' में आये परिस्पन्द का व्याख्यान करते हैं-'पागामी मुमादिरादिर्यस्य स तथोक्तस्तस्यागमः परिस्पन्दः स्वविलसितं, तेन सुन्दरः सुकुमारः।
इस प्रकार हम देखते हैं कि इन स्थलों पर कुन्तक ने परिस्पन्द का प्रयोग विलसित के पर्याय रूप में किया है।
(ङ) परिस्पन्द के पर्याय रूप में स्वरूप शब्द का प्रयोग ___ वर्णनीयवस्तु का विषयविभाग करते हुए ( ३५ )-' 'चेतनानां जडानाश्च स्वरूपं द्विविधं स्मृतम्' में आये ‘स्वरूपम्' का पर्याय देते हैं--"भावानां वर्ण्यमानवृत्तीनां स्वरूपं परिस्पन्दः ।" यहाँ निश्चय ही स्वरूप स्पन्द के पर्याय रूप में प्रयुक्त हुआ है।
(च) परिस्पन्द का स्फुरितत्व अर्थ में प्रयोग सौभाग्य गुण का विवेचन करते हुए कि वह गुण किस प्रकार का सम्पादित करना चाहिए कुन्तक ( ११५६ )