________________
१८
वाक्तजावतम्
भावोपनिषदम् | कस्यचित् , न सर्वस्य कवेः.....। प्रस्तुतौचित्यचारुन रचनाविचक्षणम्येति यावत । कः-उपकार्योपकर्तृत्वरिस्पन्दः, अनुग्राधानुग्राहकत्वमहिमा । किं कुर्वन-परिस्फुरन्. (समान. (उ)न्मीलन)। किविशिष्टः फलबन्धानुबन्धवान् प्रधानकार्यानुसन्धानवान्, कार्यानुसन्धाननिपुणः। कस्यैवंविध इत्याह-असामान्यसमुल्लेखप्रतिभाप्रतिभासिनः निरुपमोन्मीलितशक्तिविभावभ्राजिष्णोः । केषाम्--प्रबन्धस्यैकदेशानाम् . प्रकरणानाम् । तदिदमुक्तम्भवति-'सार्वत्रिकसन्निवेशशोभिनां प्रबन्धावयवानां प्रधानकार्यसम्बन्धनिबन्धनानुग्राह्यग्राहकभावः स्वभावसुभगप्रतिभाप्रकाश्यमानः कस्यचिद्विचक्षणस्य वक्रताचमत्का. रिणः कवेरलौकिकं वक्रतोल्लेखलावण्यं समुल्लासयति ।
उत्पन्न करता है अर्थात प्रकाशित करता है। किसे नवीन वक्रता के रहस्य को, नये बांकपन के गूढ़ तत्त्व को । किसी के, (यानी) सभी कवियों के नहीं । अर्थात् वर्ण्यमान के अनुरूप सुन्दर रचना करने में निपुण कवि के ही। कौन (प्रकाशित करता है ) उपकार्य एवं उपकारक भाव का परिस्पन्द अर्थात् अनुग्राह्य तथा अनुग्राहक भाव का माहात्म्य । क्या करता हुआ-परिस्फुरित होता हुआ.....। कैसा ( माहात्म्य ) फलबन्ध के अनुबन्ध वाला अर्थात् मुख्य कार्य 'का अनुवर्तन करने वाला । किसका इस प्रकार का ( माहात्म्य ) इसे बताते हैं-- असामान्य समुल्लेख वाली प्रतिभा से प्रतिभासित होने वाले का अर्थात् अनुपम वर्णन की शक्ति सामग्री से देदीप्यमान ( प्रबन्ध का ) । किनका ( माहात्म्य )प्रबन्ध के एक अंशों का अर्थात् प्रकरणों का ( माहात्म्य अभिनव वक्रता के रहस्य को उन्मीलित करता है । ) तो कहने का आशय यह हुआ कि हर जगह प्राप्त होने वाले सम्यक् प्रयोग से सुशोभित होने वाले प्रबन्ध के अवयवों ( प्रकरणों) के प्रधान कार्य से सम्बन्धका कारणभूत अनुग्राह्य अनुग्राहक भाव, सहज सुन्दर प्रतिभा से प्रकाशित होता हुआ, वक्रता के चमत्कार को उत्पन्न करने वाले किसी दूरदर्शी कवि के वक्रता प्रतिपादन के लोकोत्तर सौन्दर्य को प्रकट करता है ।
यथा-पुष्पदृषितके द्वितीयेऽङ्केप्रस्थानात्प्रतिनिवृत्य निविडानुकारतः नवरायाविभावाद् अमन्दमदनोन्मादमुद्रेण समुद्रदत्तेन निजमहिमकेतनं
१. यहाँ डा० डे ने रिक्त स्थान छोड़ दिया था और पादटिप्पणी में मल के हस पाठ को प्रश्नसूचक चिह्न लगाकर दिया था। वह अर्थ संगत लगा अतः मैंने उसे यहाँ रख दिया है। ___२. यहाँ डा० डे ने रिक्तस्थान छोड़ दिया था। तथा पादटिप्पणी में विभावादवा' पाठ दिया था। मैंने अर्या १ का कोई मतलब न लगने से उसे छोड़ दिया है।