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१. सौभाग्य गुण काव्य के उपादेय तत्त्वों अर्थात् शब्द आदि के समूह में जिस तत्व को प्राप्त करने के लिए कवि की शक्ति बड़ी हो सावधानी के साथ व्यापार करती है, उसे सौभाग्यगुण कहते हैं। यह केवल कविप्रतिभा के व्यापार द्वारा ही साध्य नहीं होता। बल्कि काव्य की समस्त उपादेय सामग्री द्वारा सम्पादनीय होता है। साथ ही सहृदयों के अन्दर अलौकिक चमत्कार की सूष्टि करने वाला होता है और काव्य का एकमात्र प्राण होता है।
२. औचित्य गुण
जिसके कारण पदार्थों का उत्कर्ष स्पष्ट ढङ्ग से परिपुष्ट होता है वही उचित कथन के प्राणवाला उक्तिप्रकार औचित्य गुण कहलाता है। इसी औचित्य के अनुरूप होने पर ही अलंकार-विन्यास सौन्दर्य लाने में समर्थ होता है।
अथवा जहाँ पर वर्ण्य पदार्थ वक्ता अथवा श्रोता के सौन्दर्यातिशायी स्वभाव के द्वारा आच्छादित कर दिया जाता है वहाँ भी औचित्य गुण होता है । ___ यदि इस औचित्य का पद, वाक्य या प्रबन्ध में कहीं भी प्रभाव होता है तो उससे सहृदयों को आनन्द-प्रतीति में बाधा पड़ जाती है ।
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