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( ५२ ) ( २ ) विचित्र मार्ग में यही प्रसाद गुण कुछ अतिशय को प्राप्त कर लेता है। इसमें सर्वथा असमस्त पदों का न्यास नहीं होता, वह कुछ-कुछ प्रोजस् का स्पर्श करता रहता है। शेष सुकुमार मार्ग के प्रसाद के लक्षण इसमें विद्यमान रहते हैं । तथा इस मार्ग में प्रसाद गुण वहाँ भी माना जाता है जहाँ एक ही वाक्य में उस वाक्यार्थ को प्रस्तुत करने के लिए अनेक दुसरे वाक्य पदों की तरह उपनिबद्ध होते हैं।
२. माधुर्यगुण-(१) सुकुमार मार्ग में माधुर्यगुण का प्राण असमस्त एवं श्रुतिरमणीयता तथा अर्थरमणीयता के कारण हृदय को आनन्दित करने वाला पदों का विशेष सन्निवेष होता है ।
( २ ) विचित्र मार्ग में भाधुर्य पदों के वैचित्र्य का समर्पक होता है। उसमें शिथिलता का अभाव सन्निवेश-सौन्दर्य का कारण बनता है।
३. लावण्यगुण-(१) सुकुमार मार्ग का लावण्य गुण वर्गों के उस वैचित्र्यपूर्ण न्यास से आता है जो बिना किसी व्यवसन के निर्मित की गई पदों की योजना-रूप सम्पत्ति को प्रस्तुत करता है।
(२) विचित्रमार्ग में यही लावण्य कुछ अतिरेक को प्राप्त कर लेता है। इसमें पदों के अन्त में आने वाले' विसर्गों की भरमार होती है । संयुक्तवर्णों का अधिक प्रयोग रहता है । पद परस्पर एक दूसरे से संश्लिष्ट होते हैं।
४. आभिजात्यगुण-(१) सुकुमार मार्ग में श्राभिजात्य गुण उसे कहते हैं, जो श्रुतिरमणीयता से सुशोभित होता है, हृदय का मानों स्पर्श-सा करता रहता है और सहज रमणीय कान्ति से सम्पन्न होता है ।
( २ ) विचित्र मार्ग में न तो यह बहुत कोमल ही कान्ति से युक्त होता है और न बहुत कठिन को हो धारण करता है। साथ ही कविकौशल से ही निर्मित होने के कारण रमणीय होता है।
इस प्रकार सुकुमार मार्ग के माधुर्य आदि गुण विचित्र मार्ग में कुछ माहार्य सम्पत्ति को प्रस्तुत करने के कारण अतिशय को प्राप्त कर लेते हैं
आभिजात्य प्रभृतयः पूर्वमार्गोंदिता गुणाः ।
अत्रातिशयमायान्ति जनिताहार्यसम्पदः ॥ १।११० मध्यम मार्ग में ये सारे के सारे गुण एक मध्यमवृत्ति का आश्रयण प्रहण कर सौन्दर्य को प्रस्तुत करते हैं ।
__ इस प्रकार कुन्तक चार-चार नियत गुणों से रमणीय मार्गत्रितय की व्याख्या करके दो साधारण गुणों को प्रस्तुत करते हैं। वे हैं-(१) सौभाग्य और (२)
औचित्य । ये दोनों गुण प्रत्येक मार्ग में पदों से लेकर प्रबन्ध तक व्यापक रूप में विद्यमान रहते हैं।