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भातम्
उन्होंने तुल्ययोगिता का लक्षण उदाहरण दिया फिर उसके बाद अनन्वय का उदाहरण देकर फिर आगे भामह के तुल्ययोगिता के उदाहरण और लक्षण को प्रस्तुत कर उसके खण्डन का प्रसङ्ग चला दिया। तथा उसके बाद तुरन्त निदर्शन अलङ्कार की चर्चा कर दो श्लोकों को उदाहरण रूप में उद्धृत किया फिर आगे भामह के अनन्वय अलंकार के लक्षण एवं उदाहरण को प्रस्तुत करने लगे । उसके बाद पुनः परिवृत्ति अलङ्कार को बीच में डाल कर आगे फिर भामह के प्रस्तुत किया। इस प्रकार पाठक्रम कुछ इतना भ्रामक एवं जटिल हो गया है जिससे कि ग्रन्थ को समझने में ओर भी कठिनाई उपस्थित हो जाती है । अत मैंने जहाँ तक सम्भव हो सका है एक अलंकार विषयक चर्चा को एक ही स्थान पर रखने का प्रयास किया है ।
निदर्शना अलङ्कार के लक्षण और उदाहरण को
इस प्रकार अनन्वय को भी उपमा से अलग अलंकार न स्वीकार कर कुन्तक निदर्शन को भी इसी तरह उपमा में ही अन्तर्भूत करते हैं वे कहते हैं कि 'निदर्शना भी लगभग इसी प्रकार होती है ।'
निदर्शनमध्येवंप्रायमेव ।
इसके बाद वे उसके उदाहरण रूप में निम्न श्लोकों को उद्धृत कर उनका विवेचन करते हैं । वे श्लोक हैं
यैर्वा दृष्टा नवा दृष्टा मुषिताः सममेव ते । हृतं हृदयमेतेषामन्येषां चक्षुषः फलम् ॥
१३० ॥
जिन्होंने ( उस सुन्दरी को ) देखा अथवा ( जिन्होंने ) नहीं देखा, वे सब साथ ही ठगे गए ( क्योंकि ) इन ( देखनेवालों ) का हृदय चुरा लिया गया एवं दूसरों के नयनों का फल ( चुरा लिया गया अर्थात् न देखने से उनकी आँखों का होना ही निष्फल रहा ) ॥ १३० ॥
( यथा वा )
यत्काव्यार्थनिरूपणं प्रियकथालापा रहोत्रस्थितिः । कण्ठान्तं मृदुगीतमाहतसुहृद्दुःखान्तरावेदनम् ।।
...।। १३१ ।।
अथवा जैसे---काव्यार्थ का प्रतिपादन, प्रिय की कथा वार्ता, एकान्त निवास, कष्ट तक ही सीमित रहनेवाला मनोहर गीत, प्रिय मित्र के सुख का कथन ॥१३१॥
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( यथा वा )
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तद्वल्गुना युगपदुन्मिषतेन तावत् सद्यः परस्परतुला मधिरोहतां द्वे ।