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तृतीयोन्मेषः
आख्यातपदप्रतिपाद्यपदार्थोपमोदाहरणं यथा
ततोऽरुणपरिस्पन्द || इत्यादि ।। १११ ।।
आख्यात पद के द्वारा प्रतिपाद्य पदार्थ की उपमा का उदाहरण जैसे
( उदाहरण संख्या १।१९ पर पूर्वोदधृत )
ततोऽरुण परिस्पन्द || इत्यादि श्लोक ॥ १११ ॥
तथाविधत्वाद्वाक्योप मोदाहरणं यथा
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मुखेन सा केतकपत्रपाण्डुना कृशाङ्गयष्टिः स्थिताल्पतारां तरुणीन्दुमण्डलां
परिमेयभूषणा ।
विभातकल्पां रजनीं व्यडम्बयत् ॥ ११२ ॥
इत्यादि ।
उस प्रकार का होने से वाक्योपमा का उदाहरण जैसे
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उस कृशाङ्गलता वाली और सीमित भूषणों वाली तरुणी ने अपने केवड़े की पंखुड़ियों की तरह पीले मुख के द्वारा थोड़े से बचे हुए तारों वाली, चन्द्रमण्डल वाली, प्रातः प्राया रात्रि की तुलना प्रस्तुत कर रही है ।। ११२ ।।
इत्यादि ।
अप्रतिपाद्यपदार्थोदाहरणं यथा
चुम्बन्कपोलतलमुत्पुलकं प्रियायाः स्पर्शोल्लसन्नयनमा मुकुलीचकार ।
आविर्भवन्मधुरनिद्रमिवारविन्द
३७३
'मिन्दुस्पृशास्तिमितमुत्पलमुत्पलिन्याः ।। ११३ ॥
अप्रतिपाद्य पदार्थोपमा का उदाहरण जैसे
जिस तरह से चन्द्रमा के स्पर्श के कारण कमलिनी का ऊपर उठा हुआ
और आती हुई मधुर नींद वाला अरविंद अस्तमित या स्तिमित हो उठता है उसी
१. डा० डे के द्वारा पादटिप्पणियों में उपन्यस्त मातृका में पाठ 'मिन्दस्पस्त' है । उन्होंने उसका रूप 'मित्रस्पृशास्त०' कर दिया है परन्तु 'अस्तमितता' या 'स्तिमितता' कमलिनी में केवल चन्द्र के ही स्पर्श से आ सकती है सूर्य के स्पर्श से तो वह प्रफुल्ल हो उठेगी न तो वह 'अस्तमित' होगी और न 'स्तिमित' । अतः मैंने यहाँ पर 'इन्दुस्पृशा' पाठ ग्रहण किया है। इसमें यहाँ पर केवल उकार की
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मात्रा डाल देने से मातृका का पाठ बदलना पड़ेगा ।
शुद्ध हो जायगा, पूरा का पूरा पद नहीं