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________________ ३७२ वक्रोक्तिजीवितम् समन्वय होने से अर्थात् एक दूसरे से सम्बन्धित होने के कारण वाक्य में बहुत से पदार्थ सम्भव होते हैं, उनमें परस्पर सम्बन्ध के प्रभाव से ( इवादि अथवा क्रियापद उपमा का प्रतिपादन करते हैं । ) तदेवं तुल्येऽस्मिन् वस्तुसाम्ये सत्युपमोत्प्रेक्षावस्तुनोः पृथक्त्व. मित्याह तो इस प्रकार इस वस्तुसाम्य के समान होने पर (भी) उपमा एवं उत्प्रेक्षा की वस्तुएँ अलग अलग होती हैं इसे बताते हैं उत्प्रेक्षावस्तुसाम्येऽपि तात्पर्यगोचरो मतः ॥ ३० ॥ तात्पर्य पदार्थव्यतिरिक्तवृत्ति वाक्यार्थजीवितभूतं वस्त्वन्तरमेव गोचरो विषयस्तद्विदामन्तःप्रतिभासः यस्य । उत्प्रेक्षा की वस्तु अर्थात् अप्रस्तुत और वाचक आदि की समानता होते हुए भी उपमा के प्रसङ्ग में धर्म ही प्राधान्य प्राप्त करता है अर्थात् धर्मोपन्यास के द्वारा ही उपमा उत्प्रेक्षा से विविक्त विषय हो जाती है । उत्प्रेक्षा में समान धर्म को नहीं प्रस्तुत किया जाता। तात्पर्य अर्थात् पदों के अर्थों से भिन्न व्यापार वाला वाक्यार्थ का प्राणभूत दूसरा तत्त्व ही गोचर अर्थात् विषय याने उसे जानने वाले. सहृदयों के हृदय में प्रतिभास होता है जिस धर्म का ( वहीं धर्म उपमा को उत्प्रेक्षा से पृथक् कर देता है )। [पाण्डुलिपि की भ्रष्टता के कारण इन पंक्तियों का आशय सुस्पष्ट नहीं हो पाता] अमुख्यक्रियापदपदार्थोपमोदाहरणं यथा पूर्णेन्दोस्तव संवादि वदनं वनजेक्षणे । पुष्णाति पुष्पचापस्य जगत्त्रयजिगीषुताम् ।। १०६ ।। गौण क्रियापद पदार्थ की उपमा का उदाहरण जैसे हे कमलो के सदृश नेत्रों वाली (प्रियतमे !) पूर्ण चन्द्रमा के साथ साम्य रखने वाला तुम्हारा मुख पुष्पचाप ( कामदेव ) की तीनों लोकों में जीतने की इच्छा को परिपुष्ट करता है ॥ १०९॥ इवादिप्रतिपाद्यपदार्थोपमोदाहरणं यथा निपीयमानस्तबका शिलीमुखैः ।। इत्यादि ॥ ११०॥ इव आदि के द्वारा प्रतिपादित किये जाने वाले पदार्थ की उपमा का उदाहरण जैसे ( उदाहरणसंख्या ११११९ पर पूर्वोधृत) निपीयमानस्तबका शिलीमुखैः ॥ इत्यादि श्लोक ॥ ११०॥
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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