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तृतीयोग्मेष:
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तदेवमुभयरूपोऽ ( पम) पि क्रियापरिस्पन्दः तामुपमां वक्त्यभिधत्ते । कथम् - विच्छित्त्या, वैदग्ध्यभङ्गया । विच्छित्तिविरहेणाभिधानेन तद्विदाह्लादकत्वं न सम्भवतीति भावः ।
इस प्रकार की उपमा का प्रतिपादन कौन करता है इसे बताते हैंक्रियापदम् इत्यादि ( कारिका के द्वारा ) | क्रिया पद अर्थात् धात्वर्थ । यहाँ केवल वाच्यवाचक सामान्य अर्थ हो अभीष्ट है केवल आख्यात पद अर्थ नहीं । क्योंकि जहाँ क्रिया गोण रूप से भी रहती है वह (क्रिया पद ) भी उपमा का वाचक ही होता है |
इस प्रकार यह उभयरूप भी क्रिया का परिस्पन्द उस उपमा को प्रतिपादित करता है । (क्रियापद) कैसे ( प्रदिपादित करता है ) विच्छित्ति के द्वारा अर्थात् वैदग्ध्यपूर्ण भङ्गिमा के द्वारा। इसका आशय यह है कि विच्छित्ति से हीन प्रतिपादन के द्वारा सहृदयों की आह्लादकता सम्भव नहीं ।
तावत् क्रियापदं न केवलं तां वक्ति यावद् इवादिः इवप्रभृतिरपि । तत्समर्पण सामर्थ्य समन्वितो यः कश्विदेव शब्दविशेषः प्रत्ययोऽपि, समासो बहुव्रीह्यादिः विच्छित्त्या तां वक्तीत्यपिः समुच्चये | कस्मिन् सति - साधारणधर्मोक्तौ । साधारणः समानो यो साध्योपमानोपमेययोरुभयोरनुयायिनोः धर्मः । कुत्र - वाक्यार्थे वा परस्परान्वयसम्बन्धेन पदसमूहो वाक्यम् । तदभिधेयं वस्तु विभूष्यत्वेन विषयगोचरं तस्याः । कथम् - यदन्वयात् । तदिति पदार्थपरामर्शः । तेषां पदार्थानां समन्वयाद् अन्योऽन्यमभिसम्बद्धत्वात् । वाक्ये बहवः पदार्थाः सम्भवन्ति, तत्र परस्पराभिसम्बन्ध माहात्म्यात् ।
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और यहाँ तक कि केवल क्रिया पद ही उस समता का प्रतिपादन नहीं करता बल्कि इव आदि भी ( करते हैं) । उस ( साम्य) को प्रतिपादित करने की सामर्थ्य से युक्त जो कोई भी शब्दविशेष, प्रत्यय या बहुव्रीहि आदि समास होते हैं सभी विच्छित्तिपूर्वक उस उपमा का प्रतिपादन करते हैं । इस प्रकार अपि शब्द का प्रयोग यहाँ समुच्चय अर्थ में हुआ है किसके उपस्थित होने पर ( साम्य का प्रतिपादन करते हैं ) साधारण धर्म का कथन होने पर । साधारण अर्थात् साध्य उपमान एवं उपमेय दोनों ही अनुयायियों का जो समान धर्म . ( उसका कथन होने पर ? ) कहीं - वाक्यार्थ में । परस्पर अन्वय रूप सम्बन्ध वाला होने के कारण पदों का समूह वाक्य होता है। उसके द्वारा प्रतिपाद्य पदार्थ अलङ्कार्य रूप से उस ( उपमा ) का विषय होता है । कैसे— उनका सम्बन्ध होने से । तत् के द्वारा पदार्थ का परामर्श होता है । उन पदार्थों का