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तृतीयोन्मेषः
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इत्यन्तरश्लोकः।
दूसरे अलङ्कारों के सौन्दर्य एवं उत्कर्ष की शोभा का अपहरण कर उत्प्रेक्षा ( अलङ्कार ) प्रथम उल्लेख पाने वाले प्राण के रूप में स्फुरित होता है। यह अन्तर श्लोक है।
इस प्रकार उत्प्रेक्षा अलङ्कार का निरूपण करने के अनन्तर कुन्तक अतिशयोक्ति अलङ्कार का विवेचन प्रारम्भ करते हैं
यस्यामतिशयः कोऽपि विच्छित्या प्रतिपाद्यते । वर्णनीयस्य धर्माणां तद्विदाह्लाददायिनाम् ॥ २७ ॥ जिसमें वर्णन किए जाने वाले पदार्थ के सहृदयों को आनन्दित करने वाले धर्मों का कोई लोकोत्तर उत्कर्ष वैदग्ध्यपूर्ण ढङ्ग से प्रतिपादित किया जाता है । ( उसे अतिशयोक्ति अलङ्कार कहते हैं ) ॥ २७ ॥ ___ एवमुत्प्रेक्षां व्याख्याय सातिशयत्वसादृश्यसमुल्लसितावसरामतिशयोक्तिं प्रस्तौति-यस्यामित्यादि । सातिशयोक्तिरलकृतिरभिधीयते । कीदृशी-यस्यामतिशयः प्रकर्षकाष्ठाधिरोहः कोऽप्यतिक्रान्तप्रसिद्धव्यवहारसरणिः विच्छित्त्या प्रतिपाद्यते वैदग्ध्यभङ्गथा समर्प्यते । कस्य-वर्णनीयस्य धर्माणाम् , प्रस्तावाधिकृतस्य वस्तुनः स्वभावानुसम्बन्धिनां परिस्पन्दानाम् । कीदृशानाम्-तद्विदाह्लाददायिनाम् , काव्यविदानन्दकारिणाम् । यस्मात्सहृदयहृदयाह्लादकारि स्वस्पन्दसुन्दरत्वमेव काव्यार्थः, ततस्तदतिशयपरिपोषिकायामतिशयोक्तावलकारकृतः कृतादराः ।
इस प्रकार उत्प्रेक्षा का विवेचन कर अतिशययुक्तता रूप साम्य के कारण ( उत्प्रेक्षा के अनन्तर ) अवसरप्राप्त अतिशयोक्ति ( अलङ्कार ) का निरूपण करते हैं-अस्याम्-इत्यादि (कारिका के द्वारा)। उसे अतिशयोक्ति अलङ्कार कहा जाता है। कैसी होती है ( वह अतिशयोक्ति)-जिसमें ( लोक-) विख्यात व्यवहारपद्धति का उब्बङ्घन करने वाला कोई ( लोकोत्तर ) अतिशय अर्थात् उत्कर्ष का चरमसीमा पर पहुंच जाना विच्छित्ति के द्वारा प्रतिपादित किया जाता है अर्थात् वैदग्ध्यपूर्ण भङ्गी के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है ( उसे अतिशयोक्ति कहते हैं)। किसके (अतिशय को इस ढङ्ग से प्रस्तुत किया जाता है ?)-वर्णनीय के धर्मों के ( अतिशय को ) अर्थात् प्रकरण के द्वारा अधिकृत पदार्थ के स्वभाव से सम्बन्धित व्यापारों के (अतिशय को प्रस्तुत किया जाता है): किस प्रकार के धर्मों का ( अतिशय )। उसे जानने वालों को आह्लाद प्रदान करने वाले अर्थात् काव्य (-तत्व ) को समझने वाले (सहृदयों ) का आनन्द उत्पन्न करने वाले