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________________ ३५० वक्रोक्तिजीवितम् तरोः' इत्यादि भी ऐसे ही हैं । इसीलिए बहुत ही सूक्ष्म और अपमान से अनतिरिक्त साम्य दीपक का निमित्त है इस विषय में सहृदय जन ही प्रमाण हैं। ] ___ अन्यच्च कीदृशम-वर्णनीयस्य विच्छित्तेः कारणम् । वर्णनीयस्य प्रस्तावाधिकृतस्य पदार्थस्य विच्छित्तेरुपशोभायाः कारणं निमित्तभूतम् [न पुनर्जन्यत्वप्रमेयत्वादिसामान्यम् ] । यस्मात् पूर्वोक्तलक्षणेन साम्येन वर्णनीयं सहृदयहारितामावहति । ____ और कैसा होता है ( दीपक बलङ्कार )-वर्णन किए जाने वाले ( पदार्थ) के सौन्दर्य का हेतु होता है। वर्णनीय अर्थात् प्रकरण के द्वारा अधिकृत पदार्थ की विच्छित्ति अर्थात् सौन्दर्य का कारण अर्थात हेतुरूप ( होता है)। यह जन्यत्व या प्रमेयत्व आदि के तुल्य नहीं हैं। क्योंकि पहले कहे गए लक्षण वाले साम्य से युक्त वर्ण्यविषय सहृदयों का आवर्जक होता है । उपचारैकसर्वस्वं यत्र तत् साम्यमुद्वहत् । यदर्पयति रूपं स्वं वस्तु तद्रूपकं विदुः ॥ १९ ॥ रूपकं विक्निक्ति-उपचारेत्यादि । वस्तु तद्रूपकं विदुः तद्वस्तु पदार्थस्वरूपं रूपकाख्यमलंकारं विदुः जना इति शेषः । कीदृशम्-यदर्पयतीत्यादि-यत् कर्तृभूतमर्पयति विन्यस्यति । किम्-स्वमात्मीयं रूपं, वाक्यस्य वाचकात्मकं परिस्पन्दम् , अलंकारप्रस्तावादलंकारस्यैव स्वसंबन्धित्वात् । किं कुर्वत्-साम्यमुद्रहत् समत्वं धारयत् ( कीदृशम् ) उपचारैकसर्वस्वम्-उपचारस्तत्त्वाध्यारोपस्तस्यैकं सर्वस्वं केवलमेव जीवितं तन्निबन्धनत्वाद् , उपचारैः रूपकस्य प्रवृत्तेः । जहाँ उपचार की एकमात्र प्राणभूत उस समानता को धारण करता हुआ पदार्थ अपने स्वरूप को समर्पित कर देता है उसे (विद्वानों ने) रूपक (अलङ्कार) कहा है। रूपक का विवेचन करते हैं-उपचार इत्यादि कारिका के द्वारा । उस वस्तु को रूपक कहा है अर्थात् लोगों ने उस पदार्थ स्वरूप को रूपक्र नाम का अलङ्कार बताया है । कैसे ( पदार्थ स्वरूप ) को-(इसे ) यदर्पयति इत्यादि ( के द्वारा बताते हैं ) । कर्ता रूप जो ( पदार्थ ) अर्पित करता है अर्थात् विन्यस्त करता है। क्या (विन्यस्त ) करता है-स्व अर्थात अपने स्वरूप को, वाक्य के वाचकरूप अपने स्वभाव को। यहां अलङ्कार का प्रकरण चलने के कारण अपने स्वरूप से आशय अलकार स्वरूप से ही है क्योंकि वही अपना सम्बन्धी है । क्या करते हुए ? साम्य को बहन करते हुए, बराबरी को धारण करते हुए । केसी
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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