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________________ ३४८ वक्रोक्तिजीवितम् अथवा जैसे-( दूसरा उदाहरण ) शुद्ध शास्त्र (श्रवण ) शरीर को अलङ्कृत करता है तथा ( क्रोधादि का ) शमन उस ( शास्त्र) का आभूषण होता है। शमन का अलङ्कार पराक्रम होता है तथा वह ( पराक्रम ) नीति के द्वारा सम्पादित सिद्धि रूप अलंकार वाला होता है ।। ७७ ॥ और जैसे-( उदाहरण संख्या ११२४ पर पूर्वोदाहृत ) चारुतावपुरभूषयदासाम् ॥ ७८ ॥ इत्यादि श्लोक । तृतीयप्रकारोऽत्रैव श्लोकार्द्ध 'दीपक'-स्थाने 'दीपित'मिति पाठान्तरं विधाय व्याख्येयः । तदयमत्रार्थः—यहीपितं यदन्येन केनचिदुत्पादिता. तिशयं सम्पादित वस्तुं तत्कर्तृभूतमन्यद्दीपयदुत्तेजयति । यथा मदो जनयति प्रीतिम् । इत्यादि ।। ७६ ॥ ( इस पंक्तिसंस्थ दीपक के ) तीसरे भेद के लिए इसी ( कारिका ) श्लोक के अर्दभाग में 'दीपक' के स्थान पर 'दीपित' यह दूसरा पाठ करके व्याख्या करनी चाहिए । तो यहाँ आशय यह है कि-जो दीपित अर्थात् किसी दूसरे के द्वारा उत्पन्न किए गए उत्कर्ष से युक्त रूप में सम्पादित की गई वस्तु है उसके कर्तृभूत् दूसरे को प्रकाशित करता हुआ उत्तेजित करता है । जैसे 'मदो जनयति प्रीतिम्' इत्यादि श्लोक ॥ ७९ ॥ ननु पूर्वाचार्यैश्चैतदेव पूर्घमुदाहृतम् । तदेव प्रथमं प्रत्याख्ययेदानी समाहितमित्यभिप्रायो व्याख्यातव्यः । सत्यमुक्तम् । तदयं व्याख्यायते-क्रियापदमेकमेव दीपकमिति तेषां तात्पर्यम्, अस्माकं पुनः कर्तृपदादिनिबन्धनानि दीपकानि बहूनि सम्भवन्तीति । ( भामह के दीपकालंकार का खण्डन करते समय कुन्तक ने भामह के इसी 'मदो जनयति' इत्यादि श्लोक की आलोचना की थी। किन्तु अब उन्होंने उसी उदाहरण को अपने अनुसार 'दीपितदीपक' के उदाहरण रूप में प्रस्तुत किया है। अतः पूर्वपक्षी शङ्का करते हैं कि ). इसी उदाहरण को तो प्राचीन (भामह आदि) आचार्यों ने उद्धृत किया है। उसी का पहले खण्डन कर अब ( आपने उसी का ) समाधान किया है तो किस आशय से, इसे बताने का कष्ट करें।
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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