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वक्रोक्तिजीवितम्
FUHARASHTRA
है ) उसी प्रकार ( रस के समान जो अलंकार होता है ) वह रसवत् अलंकार कहा जाता है। किस कारण से-रसवत्व के विधान के कारण रस है इसके पास अतः यह रसवत् हुआ काव्य, उस ( रसवत् ) का भाव रसवत्त्व हुआ उसके कारण अर्थात् सरसता का सम्पादन करने के कारण ( रस के तुल्य होता है । तथा काव्यज्ञों के आह्लाद का निर्माण करने के कारण। तत् का अर्थ है काव्य उसे जो जानते हैं वे कहे जायगे तद्विद् अर्थात् काव्य को समझने वाले उनके आह्लाद का निर्माण करने के कारण ( रस के तुल्य होता है )। ( क्योंकि ) जिस प्रकार रस काव्य की रसवत्ता तथा सहृदयों के आह्लाद को उत्पन्न करता है । उसी प्रकार उपमा आदि भी ( काव्य की रसवत्ता एवं सहृदयाह्लाद ) दोनों को उत्पन्न करते हुए ( उपमादि से भिन्न ) रसवदलङ्कार हो जाते हैं । जैसेउपोढरागेण विलोलतारकं तथा गृहीतं शशिना निशामुखम् । यथा समस्तं तिमिरांशुकं तथा पुरोऽपि रागाद्गलितं न लक्षितम् ॥ ६ ॥
( सायंकालिक ) अरुणिमा (प्रियाविषयक प्रेम ) को धारण करने वाले चन्द्रमा ( नायक ) के द्वारा चञ्चल तारों (कनीनिकाओं ) वाले रात्रि ( नायिका ) के अग्रभाग ( मुख ) को उस प्रकार से पकड़ लिया ( अर्थात् आभासित किया ) (चुम्बन के लिए पकड़ लिया ) कि जिससे लालिमा ( अनुराग ) के कारण सामने से भी गिरता हुआ तिमिरांशुक अर्थात् किरणों द्वारा विचित्र अन्धकार-समूह ( नीलजालिका ) लोगों द्वारा ( या नायिक द्वारा) नहीं देखा गया ॥ ६१ ।।
अत्र स्वावसरसमुचितसुकुमारस्वरूपयानिशाशशिनोवर्णनायां .. .... रूपकालङ्कारः समारोपितकान्तवृत्तान्तः कविनोपनिबद्धः । स च श्लेषच्छायामनोन्नविशेषणवक्रमावाद् विशिष्टलिङ्गसामर्थ्याच्च.."काव्यस्य सरसतामुल्लासयंस्तद्विदाह्लादमादधानः स्वयमेव रसवदलङ्कारतां समा. सादितवान् ।
यहाँ अपने समय के अनुरूप सुकुमार स्वभाव वाले रात्रि एवं चन्द्रमा का वर्णन करने में................ .."कवि ने कान्त ( अर्थात् नायक एवं नायिका) के वृत्तान्त का भलीभांति आरोप कर रूपक अलङ्कार की योजना की है। और वह (रूपकालङ्कार ) श्लेष के सौन्दर्य से रमणीय विशेषणों की वक्रता के कारण तथा विशेष लिङ्गों ( अथवा चिह्नों) के सामर्थ्य के कारण ..."काव्य की रससम्पन्नता को व्यक्त करते हुए तथा सहृदयों को