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वक्रोक्तिजीवितम् एतदेव प्रकारान्तरेणोन्मीलयतिरसोद्दीपनसामर्थ्यविनिवन्धनवन्धुरम् . ।
चेतनानाममुख्यानां जडानां चापि भूयसा॥ ८॥ इसी ( चेतन पदार्थों के द्विविध स्वरूप ) को दूसरे ढङ्ग से व्यक्त करते हैं
गौण चेतन ( सिंहादि पदार्थों ) का तथा अधिकतर जड़ पदार्थों का भी रस को उदीप्त करने के सामर्थ्य से युक्त रूप में वर्णन के कारण मनोहर ( स्वरूप कवियों का वर्णनास्पद होता है। ) ॥ ८ ॥
चेतानानां प्राणिनाममुख्यानामप्रधानभूतानां यत्स्वरूपं तदेवंविधं तद्वर्णनीयतां प्रतिपद्यते प्रस्तुताङ्गतयोपयुज्यमानम् । कीदृशम्-रसोद्दीपनसामर्थ्यविनिबन्धन बन्धुरम् । रसाः शृङ्गारादयस्तेषामुद्दीपनमुल्लासनं परिपोषस्तस्मिन् सामध्ये शक्तिस्तया विनिबन्धनं निवेशस्तेन बन्धुरं हृदयहारि । यथा
अमुख्य अर्थात् गौणभूत चेतन अर्थात् प्राणियों का जो स्वरूप है वह इस प्रकार का होने पर उन ( कवियो ) के वर्णन योग्य होता है अर्थात् प्रस्तुत ( पदार्थ) के अङ्ग रूप से उपयोगयोग्य होता है। कैसा ( होने पर )-रस को उदीप्त करने के सामर्थ्य से युक्त रूप में वर्णित होने से मनोहर ( होने पर ) रस अर्थात् शृङ्गारादि उनका उद्दीपन अर्थात् उल्लसित होना परिपुष्ट होना उसमें जो सामर्थ अर्थात् शक्ति उससे विनिबन्धन अर्थात् वर्णन उसके कारण बन्धुर अर्थात् मनोहर ( होने पर वर्णनीय होता है । )
चूताङ्कुरास्वादकषायकण्ठः पुंस्कोकिलो यन्मधुरं चुकूज | मनस्विनीमानविघातदक्षं तदेव जातं वचनं स्मरस्य ।। ३२ ।। ( वसन्त के प्रारम्भ में ) आम के अङ्करों के भक्षण से रक्त कण्ठ वाले पुरुष कोयल ने जो मधुर अव्यक्त ध्वनि किया वही मानो मानिनियों के मान को भंग करने में समर्थ कामदेव का वचन ( आदेश ) हो गया ॥ ३२ ॥ __जडानां चापि भूयसा-जडानामचेतनानां सलिलतरुकुसुमसमयप्रभृतीनामेवंविधं स्वरूपं रसोद्दीपनसामर्थ्यविनिबन्धनबन्धुरं वर्णनीय. तामवगाहते । यथा___ तथा अधिकतर जड पदार्थों का भी ( स्वरूप वर्णन योग्य होता है)। जड अर्थात् अचेतन जल, वृक्ष, वसन्त आदि का इस प्रकार इसको उद्दीप्त