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वक्रोक्तिजीवितम् आदि अर्थात् देवता, राक्षस, सिद्ध, विद्याधर एवं गन्धर्न आदि जो चेतन पदार्थ, तथा दूसरे जो सिंह आदि जिनमें शेर प्रधान है ऐसे पदार्थों का जो प्राधान्य अर्थात् मुख्यरूपता एवं उससे भिन्न अर्थात् गौणता उन दोनों से क्रमानुसार प्रत्येक का जो योग अर्थात् सम्बन्ध है उसके कारण ( दो प्रकार हो जाते हैं )। ___ तदेवं सुरादीनां मुख्यचेत नानां स्वरूपमेकं कवीनां वर्णनास्पदम् । सिंहादीनाममुख्यचेतनानां पशुमृगपक्षिसरीसृपाणां स्वरूपं द्वितीयमित्येतदेव विशेषेणोन्मीलयति
• तो इस प्रकार एक तो देवादिप्रधान चेतन पदार्थों का स्वरूप एक कवियों के वर्णन का आधार होता है तथा दूसरा सिंह आदि पशुओं, मृगों, पक्षियों एवं सर्प, विच्छू आदि गौण चेतन पदार्थों का स्वरूप होता है इसी बात को विशेष ढंग से प्रतिपादित करते हैं
मुख्यमक्लिष्टरत्यादिपरिपोषमनोहरम् ।
स्वजात्युचितहेवाकसमुल्लेखोज्ज्वलं परम् ॥ ७॥ सुकुमार रति आदि ( स्थायीभावों ) के परिपोष से हृदयावर्जक प्रधान (चेतन पदार्थों का स्वरूप ) तथा अपनी जाति के अनुरूप स्वभाव के सम्यक् निरूपण से सुशोभित होनेवाला दूसरा ( गौण अचेतन पदार्थों का स्वरूप कवियों के वर्णन का विषय होता है ) ॥ ७ ॥
मुख्यं यत्प्रधानं चेतनसुरासुरादिसंबन्धिस्वरूपं तदेवंविधं सत्कवीनां वर्णनास्पदं भवति स्वव्यापारगोचरतां प्रतिपद्यते । कीदृशम्-अक्लिष्टरत्यादिपरिपोषमनोहरम् | अक्लिष्टः कदर्थनाविरहितः प्रत्यग्रतामनोहरो यो रत्यादिः स्थायिभावस्तस्य परिपोषः शृङ्गारप्रभृतिरसत्वापादनम्, स्थाय्येव तु रसो भवेदिति न्यायात् । तेन मनोहरं हृदयहारि । अत्रोदाहरणा न विप्रलम्भशृङ्गारे चतुर्थेऽङ्के विक्रमोर्वश्यामुन्मत्तस्य पुरूरवसः प्रलपितानि । यथा___मुख्य अर्थात् जो चेतन देवता राक्षस आदि से सम्बन्धित प्रधान स्वरूप है वह इस प्रकार का होने पर श्रेष्ठ कवियों के वर्णन योग्य होता है अर्थात अपने व्यापार ( कविकर्म-काव्य ) का विषय होता है। कैसा होने परसुकुमार रति आदि के परिपोष से मनोहर। अक्लिष्ट अधर्म कठिनता से रहित अपूर्ण होने से मनोहर जो रति आदि स्थायीभाव हैं उनके परिपोष