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वक्रोक्तिजीवितम् कहते हैं-अपने उदार स्वरूप की रमणीयता से ( किया गया ) वर्णन । उदार का अर्थ है उत्कृष्टता से सम्पन्न सर्वातिरिक्त ऐसा जो अपना परिस्पन्द अर्थात अपने स्परूप की महत्ता उसकी सुन्दरता अर्थात् अत्यधिक सुकुमारता उससे अर्थात् अत्यधिक मनोहर अपने सहज धर्म से युक्त रूप से (किया गया ) वर्णन अर्थात् प्रतिपादन ( वस्तुवक्रता होती है ) कैसे ( किया गया वर्णन ) केवल वक्र शब्द के द्वारा ही गोचर रूप से । वक्र का अर्थ है नाना प्रकार की वक्रताओं से सम्पन्न जो शब्द अर्थात् कोई ही अभीष्ट प्रतिपाद्य अर्थ का प्रतिपादन कराने वाला विशेष शब्द केवल । उसी के गोचर रूप से अर्थात् प्रतिपाद्य होने के कारण विषय रूप से ( वर्णन )। यहाँ वाच्य रूप से (प्रतिपादन ) नहीं कहा गया क्योंकि प्रतिपादन व्यङ्गय रूप से भी हो सकता है। तो इसका आशय यह है कि इस प्रकार के पदार्थ की सहज सुकुमारता का प्रतिपादन करते समय बहुत से उपमा आदि अर्थालङ्कारों का प्रयोग ठीक नहीं होता, क्योंकि उससे पदार्थ के स्वभाव की सुकुमारता का उत्कर्ष मलिन हो जाने की सम्भावना रहती है ।
( इस पर स्वभावोक्ति को अलङ्कार स्वीकार करने वालों की ओर से यह प्रश्न उठाया जाता है कि अरे वस्तु वक्रता के रूप में आपने जिसका प्रतिपादन किया है ) यह तो वही ( दण्डी आदि आचार्यों द्वारा) अलङ्कार रूप से स्वीकार की गई सहृदयों को आनन्दित करने वाली स्वभावोक्ति है, अतः उस ( स्वभावोक्ति की अलङ्कारता को) दूषित करने के दुर्व्यसनयुक्त प्रयास से क्या ( मतलब )? क्योंकि उन ( स्वभावोक्त्यलङ्कारवादियों ) की दृष्टि में वस्तु का सामान्य धर्म ही अलङ्कार्य है और अतिशययुक्त स्वभाव के सौन्दर्य की परिपुष्टि अलवार है। अतः स्वभावोक्ति की अलंकारता ही युक्तियुक्त है ऐसा जो मानते हैं उनके प्रति (ग्रन्थकार ) समाधान प्रस्तुत करता है कि यह बात सर्वथा समीचीन नहीं है। क्योंकि अगतिकगतिन्याय से जैसे-कैसे भी काव्य-रचना प्रतिष्ठा के योग्य नहीं होती क्योंकि काव्य का लक्षण 'सहृदयों को आनन्दित करने वाला' होता है। ( जैसी-तैसी काव्य-रचना से सहृदयों को आनन्द नहीं मिलेगा अतः वह काव्य नहीं होगी। )
ननु च सैषा सहृदयाह्लादकारिणी स्वभावोक्तिरलंकारतया समाम्नाता, तस्मात् किं तदूषणदुर्व्यसनप्रयासेन ? यतस्तेषां सामान्यवस्तुधर्ममात्रमलंकार्यम् , सातिशयस्वभावसौन्दर्यपरिपोषणमलंकारः प्रतिभासते । तेन स्वभावोक्तरलंकारत्वमेव युक्तियुक्तमिति ये मन्यन्ते तान् प्रति समाधीयते यदेतनातिचतुरश्रम् । यस्मादगतिकगतिन्यायेन