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तृतीयोन्मेषः
एवं पूर्वस्मिन् प्रकरणे वाक्यावयवानां यथासंभवं वक्रभावं विचारयन् वाचकवक्रताविच्छित्तिप्रकाराणां दिकप्रदर्शनं विहितवान्। इदानीं वाक्य वक्रता वैचित्र्यमासूत्रयितुं वाच्यस्य वर्णनीयतया प्रस्तावाधिकृतस्य वस्तुनो वक्रता स्वरूपं निरूपयति, पदार्थावबोधपूर्वकत्वाद् वाक्यार्थावसिते:
इस प्रकार पहले ( द्वितीय उन्मेष के ) प्रसङ्ग में वाक्य के अङ्गरूप पदों की यथासम्भव वक्रता का विवेचन करते समय ( ग्रन्थकार के ) शब्दों की वक्रता से उत्पन्न होने वाले वैचित्र्य के प्रभेदों का कुछ परिचय दिया था । अब (तृतीय उन्मेष में) वाक्यों की वक्रता की विच्छित्ति का प्रतिपादन करने के लिए वाच्य अर्थात् वर्णन का विषय होने के कारण प्रकरण के आश्रित रहने वाले पदार्थ की वक्रता का स्वरूपनिरूपण करते हैं, क्योंकि पदार्थ का ज्ञान हो जाने के बाद ही वाक्यार्थ का बोध होता है ।
उदारस्वपरिस्पन्दसुन्दरत्वेन वर्णनम् । वस्तुनो वक्रशब्देकगोचरत्वेन वक्रता ॥ १ ॥
( वर्ण्यमान ) केवल अपने सर्वोत्कृष्ट स्वभाव की रमणीयता से युक्त रूप में, वस्तु का वक्र शब्द के द्वारा ही प्रतिपाद्य रूप में, वर्णन, ( उस पदार्थ या वस्तु की ) वक्रता होती है ॥ १ ॥
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वस्तुनो वर्णनीयतया प्रस्तावितस्य पदार्थस्य यदेवंविधत्वेन वर्णनं सा तस्य वक्रता वक्रत्वविच्छित्तिः । किंविधत्वेनेत्याह — उदारस्वपरिस्पन्दसुन्दरत्वेन | उदारः सोत्कर्षः सर्वातिशायो यः स्वपरिस्पन्दः स्वभावमहिमा तस्य सुन्दरत्वं सौकुमार्यातिशयस्तेन, अत्यन्तरमणीयस्वाभाविकधर्मयुक्तत्वे | वर्णनंप्रतिपादनम् । कथम् — वक्रशब्दैकगोचरत्वेन । वको योऽसौ नानाविधवक्रता विशिष्टः शब्दः कश्चिदेव वाचकविशेषो विवक्षितार्थसमर्थस्तस्यैकस्य केवलस्य गोचरत्वेन प्रतिपाद्यतया विषयत्वेन । वाच्यत्वेनेति नोक्तम् व्यङ्ग्यत्वेनापि प्रतिपादन संभवात् । तदिदमुक्तं भवति - यदेवंविधे भावस्वभाव सौकुमार्यवर्णन प्रस्तावे भूयसांन वाच्यालङ्काराणामुपमादीनामुपयोगयोग्यता संभवति, स्वभाव सौकुमार्यातिशयम्लानताप्रसङ्गात् ।
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वस्तु अर्थात् वर्णन का विषय होने के कारण प्रकरणप्राप्त पदार्थ का जो इस तरह से वर्णन है वह उस ( वस्तु ) की वक्रता अर्थात् बांकपन का बैचित्र्य होता है । किस तरह से वर्णन ( वक्रता होती है ) इसे ( ग्रन्थकार )